चंडीगढ़, 7 नवंबर।
हरियाणा में नायब सिंह सैनी पार्ट-2 सरकार के मंत्रियों को शपथ ग्रहण किए 21 दिन हो चुके हैं, लेकिन अब तक किसी भी मंत्री के कार्यालय में निजी स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो पाई है। न तो किसी मंत्री को आधिकारिक प्राइवेट सेक्रेटरी (पीएस) मिला है, और न ही पर्सनल असिस्टेंट (पीए) की नियुक्ति के आदेश जारी हुए हैं। मंत्रियों ने मुख्य सचिव को अपने-अपने कार्यालय के लिए स्टाफ के नामों की सूची पहले ही सौंप दी है, लेकिन नियुक्तियों को लेकर सरकार ने अब तक कोई आदेश जारी नहीं किया है।
नियुक्तियों में देरी क्यों?
सूत्रों के मुताबिक, इस बार मंत्रियों के साथ काम करने के इच्छुक पीए और प्राइवेट सेक्रेटरी की पृष्ठभूमि की गहन जांच की जा रही है। इनमें से कई कर्मचारी ऐसे हैं, जो तृतीय और द्वितीय श्रेणी के पदों पर रहते हुए भी हर सरकार में मंत्री के साथ जुड़े रहने का तरीका निकाल लेते हैं। खास बात यह है कि इनमें से कई ने पंचकूला और चंडीगढ़ जैसे महंगे क्षेत्रों में आलीशान कोठियां और व्यावसायिक संपत्तियां खरीद रखी हैं।
कम वेतन में आलीशान जिंदगी कैसे?
इन कर्मचारियों की संपत्ति ने सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर सरकारी वेतन से ये कर्मचारी इतना अधिक संपत्ति कैसे अर्जित कर पाए। सरकार अगर ईमानदारी से इनकी जांच करवाए, तो कई ट्रांसफर लिस्ट, प्रमोशन लिस्ट और स्टेशन पोस्टिंग में चलने वाले खेल का पर्दाफाश हो सकता है।
फंसने पर चेले पर गाज गिराना आम बात
मंत्रियों के निजी कार्यालयों में काम करने वाले प्राइवेट सेक्रेटरी और सीनियर सेक्रेटरी अक्सर अपने अधीन एक क्लर्क या असिस्टेंट को रखते हैं, जिसे चेला कहा जाता है। ये सेक्रेटरी किसी काम के बदले रिश्वत या दान-दक्षिणा इसी चेले के माध्यम से लेते हैं। अगर कभी कोई मामला सामने आता है, तो गाज हमेशा चेले पर गिरती है, जबकि असली खिलाड़ी बच निकलते हैं।
पिछले साल एक वरिष्ठ मंत्री के कार्यालय से एक फाइल की तस्वीर लीक होने का मामला सामने आया था। उस समय भी सिर्फ क्लर्क को निलंबित किया गया, जबकि इस गड़बड़ी के पीछे के असली लोग साफ बच निकले।
फील्ड से भी होती है सेवा
फील्ड में तैनात कई अधिकारी भी इन पीए और प्राइवेट सेक्रेटरी को सुविधा शुल्क देते हैं। यह शुल्क इसलिए दिया जाता है ताकि उन्हें ट्रांसफर, जांच या शिकायत से जुड़ी फाइलों की जानकारी पहले से मिल सके। इससे अधिकारी समय रहते अपनी स्थिति संभाल लेते हैं और बदले में ये कर्मचारी मोटी कमाई करते हैं।
नियुक्तियों में पारदर्शिता की चुनौती
नायब सिंह सैनी सरकार के सामने अब चुनौती यह है कि इन नियुक्तियों में पारदर्शिता कैसे लाई जाए। मंत्रियों के कार्यालयों में स्टाफ की नियुक्ति न केवल प्रशासनिक कामकाज के लिए जरूरी है, बल्कि यह तय करने में भी अहम भूमिका निभाती है कि सरकार की छवि कैसी बनती है। अगर सरकार इस बार सख्ती से कदम उठाए, तो मंत्रियों के दफ्तरों से जुड़े भ्रष्टाचार और सूचना लीक जैसे मामलों पर लगाम लगाई जा सकती है।
नियुक्तियों में हो रही देरी से कई कर्मचारी और अधिकारी असहज हैं।
सरकार की ओर से इस बार नियुक्ति प्रक्रिया में निष्पक्षता बरतने की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि, नियुक्तियों में हो रही देरी से कई कर्मचारी और अधिकारी असहज हैं। देखना होगा कि सरकार इस बार पारदर्शिता और ईमानदारी से कितनी दूर तक जाती है।