77वें निरंकारी संत समागम की सेवाओं का शुभारंभ
77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम की सेवाओं का विधिवत शुभारंभ रविवार को सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और निरंकारी राजपिता रमित जी के कर-कमलों द्वारा समालखा स्थित संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल पर किया गया। इस विशेष अवसर पर सतगुरु माता जी और राजपिता जी ने संत निरंकारी मंडल की एग्जीक्यूटिव कमेटी, केंद्रीय प्लानिंग एवं एडवाइजरी बोर्ड, और सेवादल अधिकारियों की उपस्थिति में सेवाओं की शुरुआत की। उन्होंने मैदान में खुद कस्सी चलाकर सेवा कार्यों का शुभारंभ किया।
गुरुग्राम सहित हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश और देश के कई अन्य हिस्सों से आए हजारों प्रभु प्रेमी भक्तों ने इस अवसर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। समागम में सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने विशाल मानव परिवार को संबोधित किया और सेवा की महत्ता पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि सेवा को कभी भेदभाव या व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। सेवा तभी सच्ची और सफल होती है जब उसे निःस्वार्थ और निष्काम भाव से किया जाए।
सतगुरु माता जी ने फरमाया, “सेवा करने का अर्थ केवल समागम के दौरान या इसके समाप्त होने तक नहीं होना चाहिए, बल्कि यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। सेवा सदैव सेवा भाव से, बिना किसी स्वार्थ के की जानी चाहिए। शारीरिक अक्षमता होने के बावजूद भी यदि सेवा भावना प्रबल हो तो वह सेवा स्वीकार्य होती है।”
उन्होंने सेवा के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि सेवा कोई दिखावा नहीं है और इसे ध्यानाकर्षण के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यह मन की शुद्धता और दिल की गुणवत्ता का प्रतीक है। उन्होंने यह भी कहा कि आधुनिक युग में अत्याधुनिक मशीनरी उपलब्ध है जो तेजी से काम कर सकती हैं, लेकिन सेवादारों को यह सौभाग्य मिला है कि वे अपने हाथों से सेवा कर सकते हैं। यह प्रेम, श्रद्धा, भक्ति और समर्पण से की जाने वाली सेवा ही सबसे ऊंची होती है।
सतगुरु माता जी ने यह भी चेताया कि अहंकार में आकर यह सोचना कि हमसे बेहतर कोई सेवा नहीं कर सकता, गलत है। उन्होंने कहा, “निरंकार किसी को भी प्रकट करके उससे सेवा ले सकता है। अहंकार को त्यागना खुद हमारे लिए ही फायदेमंद होता है। विनम्रता ही श्रेष्ठ गुण है और हमें सदैव विनम्र बने रहना चाहिए, नहीं तो हम स्वयं का ही नुकसान कर बैठते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि जो भी सेवा हम करते हैं, वह निरंकार के साधन के रूप में की जानी चाहिए, और सेवा से पीछे हटने पर नुकसान स्वयं का ही होता है।
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें भी इस सेवा में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, और उन्होंने सभी को निरंतर सेवा में लगे रहने की बधाई दी।
इस उद्घाटन समारोह के अवसर पर सेवादल द्वारा प्रार्थना की गई और सतगुरु से आशीर्वादों की अरदास की गई। सतगुरु माता जी के आशीर्वाद के साथ ही इस संत समागम की भूमि को तैयार करने की सेवा का विधिवत शुभारंभ हुआ।