गुरुग्राम 12 अक्टूबर , यहाँ के राजीव नगर स्थित अखंड परमधाम गुफा वाले शिव मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत पुराण के छठे दिन महामंडलेश्वर साध्वी आत्म चेतना गिरि जी कहा कि जाने अनजाने में भक्त से भी पापमय आचरण के कारण कुछ पाप कर्म हो जाते हैं ,किंतु वह यह सोचकर कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था ।सच्चे मन से पश्चाताप करता है तो भगवान श्री कृष्णा इस सच्चे पछतावे के आधार पर उसे क्षमा कर देंगे परंतु यदि वह जानबूझकर इस आशा से पाप करता है कि भगवान उसे क्षमा कर देंगे क्योंकि वह तो भगवान का नाम उच्चारण करता है और भगवान का परम भक्त है तो यह अक्षम्य है ।जैसे की किसी उच्च पद पर आसीन सरकारी अफसर के लिए पद का लाभ उठाकर रिश्वत लेना गंभीर अपराध है ।कोई पुलिस वाला चोरी करता है तो वह अपराध है, कानून जानने वाला कानून तोड़ता है तो वह अपराध है ,इसी प्रकार यदि ज्ञानी व्यक्ति जानते हुए भी पाप करता है तो वह पाप से मुक्त नहीं हो सकता।
महामंडलेश्वर ने एक कथा के माध्यम से बताया की
एक बार गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा कि, ‘हे कृष्ण हमे अगस्त्य ऋषि को भोग लगाने को जाना है, और ये यमुना जी बीच में पड़ती है | अब आप बताओ हम कैसे जाएं?
भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों से कहा कि, जब तुम यमुना जी के पास जाओ तो उनसे कहना कि, हे यमुना मईया अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमें रास्ता दो | कृष्ण की इस बात को सुनकर गोपियाँ हंसने लगी कि, लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते है, सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घूमते है, कभी हमारे वस्त्र चुराते है कभी मटकिया फोड़ते है … खैर फिर भी हम बोल देंगी |
गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर कहती है, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दें, और गोपियों के कहते ही यमुना जी ने रास्ता दे दिया | यह सब देख कर गोपियाँ तो सन्न रह गई ये क्या हुआ ? कृष्ण ब्रह्मचारी ? !!!
अब गोपियां अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापस आने लगी तो उन्होंने अगस्त्य ऋषि से कहा कि, अब हम घर कैसे जाएं ? यमुनाजी बीच में है |अगस्त्य ऋषि ने कहा कि तुम यमुना जी को कहना कि अगर अगस्त्यजी निराहार है तो हमें रास्ता दें |गोपियाँ मन में सोचने लगी कि अभी हम इतना सारा भोजन लाई वो सबभोजन अगस्त्य ऋषि ने हमारे सामने कर लिया और अब अपने आप को निराहार बता रहे हैं?
गोपियां यमुना जी के पास जाकर बोली, हे यमुना जी अगर अगस्त्य ऋषि निराहार है तो हमे रास्ता दें, और यमुना जी ने रास्ता दे दिया |गोपियां आश्चर्य करने लगी कि जो खाता है वो निराहार कैसे हो सकता है? और जो दिन रात हमारे पीछे पीछे फिरता है वो कृष्ण ब्रह्मचारी कैसे हो सकता है?
इसी उधेड़बुन में गोपियों ने कृष्ण के पास आकर फिर से वही प्रश्न किया |भगवान श्री कृष्ण कहने लगे,
गोपियों मुझे तुमारी देह से कोई लेना देना नहीं है, मैं तो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हूँ | मैंने कभी वासना के तहत संसार नहीं भोगा मैं तो निर्मोही हूँ | इसीलिए यमुना ने आप को मार्ग दिया |
श्री कृष्ण हंसने लगे और बोले
तब गोपियां बोली भगवन, मुनिराज ने तो हमारे सामने भोजन ग्रहण किया फिर भी वो बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवासी हो तो हे यमुना मैया मार्ग दें! और बड़े आश्चर्य की बात है कि यमुना ने मार्ग दे दिया! श्री कृष्ण हंसने लगे और बोले कि,अगत्स्य आजन्म उपवासी हैं | अगत्स्य मुनि भोजन ग्रहण करने से पहले मुझे भोग लगाते हैं | और उनका भोजन में कोई मोह नहीं होता उनको कतई मन में नहीं होता कि में भोजन करूं या भोजन कर रहा हूँ | वो तो अपने अंदर रह रहे मुझे भोजन करा रहे होते हैं, इसलिए वो आजन्म उपवासी हैं |
अतः यह आवश्यक है कि बस मन में सर्वदा ठाकुरजी का नाम गूंजता रहे और उनके श्री चरणों से प्रेम और श्रद्धा बनी रहे ।
यहाँ के राजीव नगर गुफा वाले शिव मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत पुराण के छठे दिन महामंडलेश्वर साध्वी आत्म चेतना गिरि ने कहां कि जो प्रभु से सच्चा प्यार करते हैं , प्रभु उनके ऋणी हो जाते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं । परंतु इसके लिए आवश्यक है कि हम पूरी श्रद्धा और नियम से सभी कार्य करें। श्रीमद्भागवत पुराण में स्वयं श्री श्रीकृष्ण गोपियों से कहते है कि जो मुझसे प्रेम करता है, मैं उनका सच में ऋणी हूँ, ओर उस ऋण को उतारने के लिए मैं स्वयं आता हूँ।
महामंडलेश्वर में एक कथा के माध्यम से बताया की
एक बार गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा कि, ‘हे कृष्ण हमे अगस्त्य ऋषि को भोग लगाने को जाना है, और ये यमुना जी बीच में पड़ती है | अब आप बताओ हम कैसे जाएं?
भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों से कहा कि, जब तुम यमुना जी के पास जाओ तो उनसे कहना कि, हे यमुना मईया अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमें रास्ता दो | कृष्ण की इस बात को सुनकर गोपियाँ हंसने लगी कि, लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते है, सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घूमते है, कभी हमारे वस्त्र चुराते है कभी मटकिया फोड़ते है … खैर फिर भी हम बोल देंगी |