Sunday, September 22, 2024

अपनी अनोखी कला के जरिये समाज को कर रहे जागरूक

नई दिल्ली 24 नवंबर। हरियाणा सरकार की संत महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रसार योजना से प्रेरणा लेकर फरीदाबाद जिले के एतमादपुर गांव के उदित नारायण इतिहास की कड़ी को अपनी कला के माध्यम से वर्तमान से जोड़ना चाहते है। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में वे प्रयत्नशील है और उन्होंने दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे व्यापार मेले के हरियाणा मंडप में अपनी स्टॉल लगाकर आगंतुकों को प्रभावित भी किया है।
किसी रंग, ब्रश, स्याही और कलम का प्रयोग किए बिना उदित नारायण ने अपने बनाये चित्रों से आगंतुकों को आश्चर्यचकित कर दिया है।  दूर से दिखाई देने वाली साधारण सी पेंटिंग पास से देखने पर कौतूहल का कारण बन रही है। कोई भी दर्शक अपनी आँखों पर तब भरोसा नहीं कर पाता जब उसे मालूम होता है कि यह पेंटिंग किसी रंग या स्याही से ना बनाकर, वेस्ट प्लास्टिक की तार, प्लाईवुड, फर्नीचर में इस्तेमाल होने वाली रंग-बिरंगी टक्कर टेप और प्लास्टिक के अन्य बचे हुए सामान से तैयार की गई है।

बिना किसी शुल्क के लोगों को सिखा रहे यह कला

हरियाणा के उदित नारायण बैंसला पेशे से एंग्लो वैदिक गुरुकुल, पुरकाजी में ड्राइंग/चित्रकला के अध्यापक हैं। औपचारिक शिक्षा की बात करें तो उन्होने टेक्सटाइल डिजाइनिंग का कोर्स किया हुआ है। अपनी कला के माध्यम से वे भावी पीढ़ी को प्रकृति के संरक्षण और वेस्ट पदार्थो के सदुपयोग का सन्देश दे रहे हैं। नई पीढ़ी को इस प्रयास से जोड़ने के लिए वे बिना किसी शुल्क के लोगों को यह कला सिखा भी रहे हैं।
जलते प्लास्टिक के तार ने झकझोरा उस दिन निश्चय किया, अब चुप नहीं बैठना
उदित नारायण ने बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के 2014 में स्वच्छ भारत मिशन के आह्वान पर उन्हें यह विचार आया कि क्यों न अपनी इस कला में प्लास्टिक वेस्ट का इस्तेमाल किया जाएं। इस सोच को तब और भी बल मिला जब उन्होंने जलते हुए प्लास्टिक के तार से उठता धुआँ देखा। उस समय मानो किसी ने उन्हें झकझोर दिया। उन्होने उसी दिन निश्चय किया कि अब चुप नहीं बैठना।

अपनी अनोखी कला के जरिये समाज को कर रहे जागरूक

उन्हें प्लास्टिक से हो रहे नुकसान और पर्यावरण संरक्षण के लिए दिए जाने वाले संदेशों का यह सशक्त जरिया नज़र आया। वे बताते है कि प्लास्टिक आज हर जगह देखने को मिल रहा है। खेत-खलिहान से लेकर हिमालय की चोटी हो या समुद्र और नदी -नाले, प्लास्टिक आज सभी जगह देखा जा सकता है। जो हवा, मिट्टी और पानी में घुल कर हमारे पारिस्थिकी तंत्र को बेहद नुकसान पहुंचा रहा है। लुप्त हो रही गौरिया चिड़िया भी इस जैव तंत्र को हो रहे नुकसान का जीता जागता उदाहरण है। इन सभी चित्रों के जरिये आज वे समाज में जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं।

पीएम मोदी द्वारा वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत मिशन के माध्यम से हुनर से पहचान स्थापित करने को किया गया प्रोत्साहित

बचपन से ही कला में रूचि रखने वाले उदित नारायण अब तक अपनी कला के माध्यम से कई पुरुस्कार भी जीत चुके हैं। वे कहते है कि छोटी उम्र से ही वे सूरजकुंड मेले में आ रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री इंदिरा गाँधी के द्वारा 1983 में आयोजित एक राज्य स्तरीय प्रतियोगिता, बड़खल में उन्हें तीसरा स्थान प्राप्त होने पर पुरस्कृत किया गया। वहीं से इस कला के प्रति रुझान और बढ़ गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम “मन की बात” के दौरान भी उनके काम की खूब प्रशंसा की और कहा कि वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत मिशन में भी अपने हुनर के द्वारा अपनी पहचान स्थापित करें। उन्होंने पीएम मोदी का चित्र दिल्ली के हुनर हाट मेले में बनाकर उन्हे भेंट भी किया जिसकी प्रधानमंत्री ने भरपूर प्रशंसा की और इस हुनर को नई पीढ़ी को सिखाने की उनसे अपील भी की।
  हरियाणा के मुख्यमंत्री  मनोहर लाल को भी वे उनके चित्र 3 बार भेंट कर चुके हैं, जिसकी मुख्यमंत्री ने खूब सराहना की है। साथ ही उन्हें इस अनोखी कला के लिए प्रोत्साहित भी किया। 32वें सूरजकुंड मेले में हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल श्री कप्तान सिंह सोलंकी द्वारा कला निधि अवार्ड से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।

चण्डीगढ़ के रॉक गार्डन की तर्ज़ पर कुरुक्षेत्र में महाभारत का सम्पूर्ण दृश्य बनाने का है सपना 

उदित नारायण के इन चित्रों में प्राकृतिक सौंदर्य, लुप्त होती गौरैया चिड़िया, मोबाइल फोन के चार्जर से बनी महिला के चेहरे की आकृति दर्शकों को आकर्षित कर रही हैं। वह कहते है कि पदम् श्री से सम्मानित नेक चंद के चण्डीगढ़ में बने रॉक गार्डन की तर्ज़ पर वह भी हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में महाभारत का सम्पूर्ण दृश्य बनाना चाहता है। हरियाणा सरकार ने संत महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रचार प्रसार योजना के तहत महान संतों और महापुरुषों के साथ-साथ वीर-वीरांगनाओं की शिक्षाओं और संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। इसी योजना के तहत उदित नारायण चाहते है कि वे अपनी कला के माध्यम से प्रदेश के संत महापुरूषों के चित्रों को जन मानस तक ले जाए, ताकि इतिहास और वर्तमान के बीच उनकी कला कड़ी का काम कर सके।

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