गर्भवती बिलकिस से दुष्कर्म, उनके परिवार की हत्या करने वालों को किस कानून के तहत मिली थी रिहाई?
गुजरात 08 जनवरी 2024| गुजरात के गोधरा में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया। ये सभी बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में सजा काट रहे थे। दोषियों की रिहाई के बाद बिलकिस बानो और उनके परिवार ने इस फैसले पर निराशा जताई और मामले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस केस में अब आठ जनवरी को फैसला आया है। सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए सभी दोषियों की सजा में मिली छूट को रद्द कर दिया।
बिलकिस बानो कौन हैं, 2002 में उनके साथ क्या हुआ था?
27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस में आग लगा दी गई थी. इस घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 श्रद्धालुओं की मौत हो गई. इस घटना के कारण गुजरात में दंगे भड़क उठे। 3 मार्च 2002 को दंगे की आग बिलकिस के परिवार तक पहुंच गई. उस वक्त 21 साल की बिलकिस के परिवार में बिलकिस और उनकी साढ़े तीन साल की बेटी के साथ 15 अन्य सदस्य भी थे। चार्जशीट के मुताबिक बिलकिस के परिवार पर हसिया, तलवार और अन्य हथियारों से लैस 20-30 लोगों ने हमला बोल दिया था। इनमें दोषी करार दिए गए 11 लोग भी शामिल थे।
दंगाइयों ने बिलकिस, उनकी मां और परिवार की तीन अन्य महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया। उन सभी को बेरहमी से पीटा। हमले में परिवार के 17 में से सात सदस्यों की मौत हो गई। छह लापता हो गए। केवल तीन लोगों की जान बच सकी। इनमें बिलकिस, उनके परिवार का एक पुरुष और एक तीन साल का बच्चा शामिल था। इस घटना के वक्त बिलकिस पांच महीने की गर्भवती थीं। दंगाइयों की हैवानियत के बाद बिलकिस करीब तीन घंटे तक बेसुध रहीं।
घटना के बाद क्या हुआ ?
घटना के बाद बिलकिस लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन पहुंचीं। जहां उन्होंने शिकायत दर्ज कराई। सीबीआई के मुताबिक शिकायत दर्ज करने वाले हेड कॉन्स्टेबल सोमाभाई गोरी ने भौतिक तथ्यों को दबाया और बिलकिस की शिकायत को तोड़-मरोड़ कर लिखा। यहां तक की उन्हें मेडिकल जांच के लिए सरकारी अस्पताल में तब ले जाया गया जब वो गोधरा के राहत कैंप में पहुंची। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद बिलकिस का मामला सीबीआई को जांच के लिए स्थानांतरित कर दिया गया।
सीबीआई की जांच से सजा तक क्या-क्या हुआ ?
सीबीआई ने मामले की नए सिरे से जांच शुरू की. जांच में पता चला कि मारे गए लोगों का पोस्टमॉर्टम भी ठीक से नहीं किया गया था. सीबीआई जांचकर्ताओं ने हमले में मारे गए लोगों के शवों को कब्र से बाहर निकाला और पाया कि किसी भी शव की खोपड़ी तक नहीं थी। सीबीआई के मुताबिक, पोस्टमॉर्टम के बाद लाशों के सिर काट दिए गए, ताकि शवों की पहचान न हो सके.
मामले का ट्रायल शुरू हुआ तो बिलकिस बानो को जान से मारने की धमकी मिलने लगी। इसके बाद ट्रायल को गुजरात के बाहर महाराष्ट्र शिफ्ट कर दिया गया। मुंबई की कोर्ट में छह पुलिस अधिकारियों और एक डॉक्टर समेत कुल 19 लोगों के खिलाफ आरोप दायर हुए। जनवरी 2008 में एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को दुष्कर्म, हत्या, गैर कानूनी रूप से इकट्ठा होने समेत अन्य धाराओं में दोषी ठहराया गया। वहीं, बिलकिस की रिपोर्ट लिखने वाले हेड कॉन्स्टेबल को कोर्ट ने आरोपियों को बचाने के लिए गलत रिपोर्ट लिखने का दोषी पाया गया। जबकि, सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। वहीं, एक आरोपी की ट्रायल के दौरान मौत हो गई।
जिन 11 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था उनमें जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, नरेश कुमार मोरधिया (मृतक), शैलेष भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप वोहानिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, नितेश भट्ट, रमेश चंदना और हेड कांस्टेबल सोमाभाई गोरी शामिल थे। जसवंत, गोविंद और नरेश को बिलकिस से दुष्कर्म किया था। वहीं, शैलेष ने बिलकिस की बेटी सालेहा को जमीन पर पटक कर मार डाला था।
मई 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सामूहिक दुष्कर्म मामले में 11 लोगों की आजीवन कैद की सजा को बरकरार रखा। वहीं, पुलिसवालों और डॉक्टर समेत बाकी सात लोगों को बरी कर दिया। अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश दिया कि वो बिलकिस को दो हफ्ते के अंदर 50 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर दे।
रेप और हत्या के दोषियों को आखिर किस आधार पर छोड़ा गया है ?
11 दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में सजा माफी के लिए याचिका दायर की। कोर्ट ने गुजरात सरकार को याचिका पर फैसला लेने को कहा। इसके बाद गुजरात सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने माफी की याचिका मंजूर कर ली। इसके बाद इन लोगों की रिहाई हुई।
किस कानून के तहत हुई दोषियों की रिहाई ?
संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 में राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास कोर्ट से सजा पाए दोषियों की सजा को कम करने, माफ करने और निलंबित करने की शक्ति है। कैदी राज्य का विषय होते हैं इस वजह से राज्य सरकारों के पास भी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432 के तहत सजा माफ करने का अधिकार है।
हालांकि, सीआरपीसी की धारा 433A में राज्य सरकार पर कुछ पाबंदियां भी लगाई गई हैं। जैसे फांसी या उम्रकैद की सजा पाए दोषी को तब तक जेल से रिहा नहीं किया जा सकता है जब तक उसने कम से कम चौदह साल की कैद की सजा नहीं काट ली हो। सजा माफी की याचिका लगाने वाले राधेश्याम को जेल में 15 साल चार महीने हो चुके थे।
बिलकिस ने क्या विकल्प अपनाया ?
बिलकिस ने सरकार के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सरकार के इस आदेश को किसी भी अन्य सरकारी आदेश की तरह ही चुनौती दी जा सकती है। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 दोषियों की सजा पर मिली छूट को रद्द कर दिया।