मिसाल बनी राधा देवी ने घर में बेकार वस्तुओं से बने सजावटी सामान से शुरू किया था काम, अब दूसरी महिलाओं को दिया रोजगार, यूनिट भी स्थापित की
नई दिल्ली, 11 जनवरी|पर्यावरण के लिए घातक बने पालिथीन का सबसे बेहतर विकल्प जूट से बने उत्पाद हो सकते हैं। विशेषकर थैले का विकल्प जूट के बैग हो सकते हैं। फरीदाबाद में जूट के थैले व अन्य उत्पाद पर पिछले दस साल से काम कर रही राधा देवी व उसके परिवार ने इसे रोजगार परक बना दिया है।उनके प्रयास का रंग इस बार दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित आत्मनिर्भर भारत उत्सव 2024 में दिखाई दी है। यह उत्सव दिल्ली के भारत मंडपम में 3 से 10 जनवरी तक लगाया गया जिसमें राधा देवी के परिवार की ओर से स्टाल लगाई गई थी।
इस आत्मनिर्भर भारत उत्सव में देश के कोने- कोने से हथकरघा और हस्तशिल्प के हुनरमंद कलाकारों की कलाकृतियों की अनूठी कला की छाप हर स्टाल पर दिखाई दी।
राधा देवी कहती है कि भारत सरकार व प्रदेश सरकार के लोकल टू वोकल के आह्वान पर शिल्पकारों व अन्य कारीगरों को आगे बढ़ाने की सरकार की नीति ने मानों हम जैसे हज़ारों हुनरमंद लोगो की जिंदगी बदल देने का काम किया है।
एक ही स्थान पर भारत के अलग अलग प्रदेशों से आए इन कलाकारों की कला का प्रदर्शन दर्शकों के कोतुहल का कारण भी बना रहा ।जहाँ कोई बंगाल में खड्डी की मदद से बनने वाली साड़ी का प्रदर्शित करता नज़र आया तो कही कोई बापू के प्रिय चरखे को चलाता दिख जाता। बात करे पेंटिंग्स की तो यहाँ नायब पेंटिंग्स को हाथ से बनाते कई कलाकार दिखाई दिए जो लोगों को अपनी कला के जरिये मंत्रमुग्ध कर रहे थे। यह आत्मनिर्भर भारत उत्सव अपने आप में मिनी इंडिया को समेटे हुए नज़र आया।
यहां पर्यावरण संरक्षण का अलग प्रयास यूं तो कई स्टाल पर नजर आया लेकिन कुछ अलग कारीगरी के साथ पर्यावरण की चेतना जगाते हुए राधा देवी व उसकी बेटियां दिखाई दी। मंडप में गुजरते हुए अनायास ही हाथ की बनी जूट की टोकरी, प्लांटर, पर्स जैसे अनेक समान किसी को भी उनकी स्टाल की तरफ़ खींच लेते।
जूट से बने अत्याधुनिक और पर्यावरण सहेजते कलाकृतिओं का प्रदर्शन राधा देवी की स्टाल पर दिखाई दिया।
हाथ से बनी इन वस्तुओं को जब किसी भी ख़रीददार की तारीफ़ मिलती और वह बिक्री की शक्ल लेती तो राधा देवी के चेहरे की चमक भी उतनी ही सकून से भरी नज़र आती दिखाई देती।
यहां हाथ से बने जुट के सामान में आधुनिकतावाद की छाप भी थी। पर्यावरण को सहेजने के प्रयास भी उनके हस्तशिल्प से निर्मित घरेलू उपयोग की वस्तुओं में नज़र आती थी।हरियाणा के उनके स्टॉल की हर बिक्री उनकी रोज़ी रोटी और उनके स्वरोज़गार की इबारत ख़ुद उनके हाथ के हुनर के साथ लिखी जान पड़ती ।
पति ने घर पर शुरू किया था काम, अब पूरा परिवार इसी में लगा
अपने इसी आत्मनिर्भर और स्वावलंबी होने का श्रेय राधा देवी अपनी लगन और हरियाणा सरकार की सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों को बढ़ावा दे रही नीतियों को देती है। वह कहती है कि सरकार की मदद के बिना यह मुक़ाम संभव नहीं था।इस काम से जुड़ने के बाद उनकी और उनके परिवार की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई है। जहाँ पहले छोटी-छोटी जरूरतों के लिए सोचना पड़ता था, आज आसानी वह सब पूरी हो रही है। वह कहती है कि शुरुआत में उनके पति लकड़ी का काम करते थे। घर का खर्च बमुश्किल ही चल पाता था।
बेकार प्लास्टिक से सजावट का सामान बनाना किया था शुरू
तब मैने घर से ही बेकार प्लास्टिक के उत्पादों से छोटे गमले , गुलदस्ते ,फूल ,प्लास्टिक की पन्नी से बनी चप्पल ,टोकरी ,लैम्प व अन्य घर की सजावट के सामान बनाना शुरू किया। प्लास्टिक की बेकार बोतल व अन्य बेकार प्लास्टिक से पर्यावरण को हो रहे नुकसान के प्रति लोगो को जागरूक करने के साथ साथ ये अब हमारी कमाई का भी जरिया बन गया था, लेकिन इस काम में ज्यादा कमाई नहीं थी। साथ ही प्लास्टिक का विकल्प ढूंढना हमारी प्राथमिकता थी। और कहते है ना कि जहाँ चाह है वहाँ राह। प्लास्टिक के विकल्प की तलाश करते करते यह तलाश जूट पर जाकर पूरी हुई। जूट के रूप में हमें प्लास्टिक का एक बेहतरीन विकल्प मिल गया था। यह ज्यादा महँगा ना होकर भी सालों साल चलने वाला पर्यावरण के अनुकूल एक बेहतरीन उत्पाद था।
घर पर लगाई थी छोटी यूनिट
इस सफर की असली शुरुआत 2014 में हुई। तब स्वच्छ भारत अभियान की चर्चा जोर शोर से हो रही थी। बस उसी समय मन बना लिया था कि काम इसी दिशा में करना है। पता चला कि जूट बंगाल से मँगवाया जाता है,तो जूट के कारोबारियों से संपर्क कर जूट का इन्तजाम किया। आस-पास रहने वाली 30 -35 महिलाओं को इस कार्य में अपने साथ जोड़ा ताकि वे भी आत्मनिर्भर बन अपने पैरों पर खड़ी हो सके। मेरे इस सफर में घर वालो ने भी पूरा सहयोग किया। घर में ही एक छोटी सी यूनिट बना कर घर से ही काम की शुरुआत की। लोगो को हमारे बनाये जूट के प्रोडक्ट जैसे जूट बैग ,टोकरी ,प्लांटर , मैट्स ,पर्स ,लैम्प, पाउच आदि पसंद आ रहे थे। मांग बढ़ने पर हमने घर के पास ही एक दुकान भी ले ली। हमारे बनाये उत्पादों की डिमांड लगातार बढ़ रही थी। अब तक हमको स्थायी आर्डर भी मिलने लगे थे। इससे मुझे इस काम को और आगे बढ़ने का हौसला भी मिलता चला गया।
सूरजकुंड मेले से मिली पहचान
2015 में पहली बार हमने सूरजकुंड मेले में अपने उत्पादों को धरती माँ ट्रस्ट के नाम से प्रदर्शित किया। उसके बाद से आज तक यह सिलसिला जारी है।
आज हमारे उत्पाद देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी पहचान बना रहे है।राधा देवी गर्व से कहती है कि आज विभिन्न कॉलेज और स्कूल से वर्कशॉप करवाने के उन्हे निमंत्रण आते है।अच्छा लगता है जब आपकी कारीगरी के लोग मुरीद हो जाते है। वह कहती है कि मुझे मेरी पहचान मेरे इन उत्पादों के जरिये मिली है। इसके लिए मैं हरियाणा सरकार की तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। प्रदेश सरकार ने हम जैसे कई छोटे स्तर पर कार्य कर रहे लघु उद्यमियों को अपने व्यापार को बड़ा बनाने के साथ साथ बड़े सपने देखने का मौका भी दिया है। वही दूसरी ओर महिला सशक्तिकरण की दिशा में सरकार के यह कदम सराहनीय है।
नौकरी देने की सोच रखें मांगने की नहीं
वह कहती है कि सूरजकुंड मेला, भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला ,आत्मनिर्भर भारत उत्सव जैसे अनेक मेले स्थानीय कारीगरों व शिल्पकारों के लिए उम्मीद की एक नई किरण साबित हो रहे है।इन मेलों के माध्यम से हमारे हुनर को सही मंच मिल रहा है।आज मैं फ़ख़्र से कह सकती हूँ कि मेरा नाम भी उन लोगो में शुमार हो चला है कि हम नौकरी माँगने वाले नहीं नौकरी देने वाले बन गये है।उन्होंने कहा कि अगर यू ही सरकार सूक्ष्म और लघु कारीगरों का साथ देती रही तो महिलाओं के स्वावलंबन की दिशा में यह क़तार और भी लंबी होगी।