हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीतियां तेज कर दी हैं। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दोनों ने अपने-अपने वोट बैंक को साधने के लिए स्पष्ट तौर पर अलग-अलग चुनावी दांव चले हैं। कांग्रेस जहां परंपरागत जाट वोट बैंक पर निर्भर है, वहीं बीजेपी ने सामान्य वर्ग और नए चेहरों को मैदान में उतारकर अपने समीकरण साधने की कोशिश की है।
कांग्रेस का जाट कार्ड:
हरियाणा की राजनीति में जाट समुदाय का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है, और कांग्रेस इसे भली-भांति समझती है। पिछले चुनावों में जाटों के समर्थन से कांग्रेस को अच्छा प्रदर्शन करने में मदद मिली थी, और इस बार भी कांग्रेस ने जाट नेताओं को प्रमुख पदों पर रखते हुए अपने इस परंपरागत वोट बैंक को मजबूत करने का प्रयास किया है।
पार्टी की रणनीति के केंद्र में जाट नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा हैं, जो राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं और जाट समुदाय में उनकी गहरी पकड़ है। हुड्डा को कांग्रेस का चेहरा बनाकर, पार्टी ने यह साफ संकेत दिया है कि वह जाट समुदाय को अपने साथ बनाए रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। इसके साथ ही, कांग्रेस नेता कुमारी सैलजा और अन्य वरिष्ठ नेता भी अपने क्षेत्रों में जाट वोटरों को साधने का प्रयास कर रहे हैं।
बीजेपी का दांव: सामान्य वर्ग और नए चेहरे:
दूसरी ओर, बीजेपी ने अपने चुनावी समीकरण में एक बड़ा बदलाव किया है। पार्टी ने इस बार सामान्य वर्ग के वोटरों और नए चेहरों को प्राथमिकता दी है। बीजेपी ने यह समझा है कि सिर्फ जाट वोटरों पर निर्भर रहना उसकी चुनावी सफलता के लिए पर्याप्त नहीं होगा, इसलिए उसने गैर-जाट समुदाय, खासकर ब्राह्मण, बनिया, और अन्य सामान्य वर्गों को साथ जोड़ने की कोशिश की है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई में बीजेपी ने राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत किया है। खट्टर खुद एक गैर-जाट नेता हैं और बीजेपी उनके नेतृत्व में सामान्य वर्ग के वोटरों तक पहुंच बना रही है। साथ ही, पार्टी ने कई नए चेहरों को मौका देकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह राज्य में युवा और नए नेतृत्व को आगे बढ़ाना चाहती है।
बीजेपी और कांग्रेस की चुनावी रणनीति:
बीजेपी ने अपने संगठन में नए लोगों को मौका देकर सत्ता विरोधी लहर को कम करने का प्रयास किया है। पार्टी ने यह सुनिश्चित किया है कि हर वर्ग का प्रतिनिधित्व हो, और खट्टर के नेतृत्व में गैर-जाट वोटरों को साधने की पूरी कोशिश की जा रही है।
वहीं कांग्रेस हुड्डा और सैलजा जैसे अनुभवी नेताओं पर भरोसा कर रही है और अपनी पुरानी रणनीति को जारी रखते हुए जाट वोटरों के साथ अन्य समुदायों को भी साधने का प्रयास कर रही है। पार्टी का मानना है कि जाटों का समर्थन उसे सत्ता में वापस ला सकता है, जबकि बीजेपी का गैर-जाट दांव उसे चुनौती दे सकता है।
आने वाले चुनावों का परिदृश्य:
हरियाणा की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं, और इस बार भी कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने अपनी चुनावी रणनीतियों को इन्हीं समीकरणों के आधार पर तैयार किया है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस अपने जाट वोट बैंक को बनाए रखने में सफल रहती है, या बीजेपी अपनी नई रणनीति से चुनावी समीकरणों को बदलने में कामयाब होती है।
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