कैग रिपोर्ट की अनदेखी:
नई दिल्ली, 13 जनवरी 2025
भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाने वाले मीडिया पर सवाल उठने लगे हैं, खासतौर पर कैग (CAG) रिपोर्ट को लेकर। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की हालिया रिपोर्ट में कई सरकारी परियोजनाओं और नीतियों में गड़बड़ियों का खुलासा हुआ है, लेकिन इन रिपोर्टों को मुख्यधारा के मीडिया में अपेक्षित कवरेज नहीं मिल रहा है। इसने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अख़बार और मीडिया हाउस भाजपा के प्रभाव में आकर काम कर रहे हैं?
कैग रिपोर्ट: भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का खुलासा
कैग की ताजा रिपोर्ट में सरकारी परियोजनाओं में बड़ी अनियमितताओं और गड़बड़ियों का जिक्र किया गया है। इनमें शामिल हैं:
- योजना की धनराशि का दुरुपयोग: कई योजनाओं में फंड्स का सही इस्तेमाल नहीं हुआ।
- अप्रभावी क्रियान्वयन: इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास परियोजनाएं समय पर पूरी नहीं हुईं।
- अधिक भुगतान और वित्तीय नुकसान: ठेकेदारों और कंपनियों को अनुचित लाभ दिए गए।
हालांकि, इतनी गंभीर रिपोर्ट होने के बावजूद, इसका कवरेज मीडिया में सीमित है।
मीडिया पर सवाल: क्यों हो रही है अनदेखी?
- भाजपा सरकार का प्रभाव: विपक्ष और आलोचकों का आरोप है कि भाजपा सरकार ने मीडिया पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण कर रखा है। इससे आलोचनात्मक खबरों को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।
- विज्ञापनों पर निर्भरता: बड़े मीडिया हाउस सरकारी विज्ञापनों पर अत्यधिक निर्भर हैं। ऐसे में सरकार की आलोचना करने से उनका वित्तीय नुकसान हो सकता है।
- विचारधारा आधारित कवरेज: कुछ मीडिया संस्थानों पर भाजपा समर्थक होने का आरोप पहले भी लग चुका है।
विपक्ष ने साधा निशाना
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने मीडिया की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया,
“कैग रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सामने आए हैं, लेकिन मीडिया खामोश है। क्या अब मीडिया सरकार का प्रचार तंत्र बन गया है?”
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा,
“कैग की रिपोर्ट पर चुप्पी दिखाती है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब निष्पक्ष नहीं रहा।”
क्या मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है?
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सवाल उठे हैं। हाल के वर्षों में भारत प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में नीचे खिसका है। विशेषज्ञों का मानना है कि मीडिया पर सरकार की पकड़ मजबूत हो रही है।
आम जनता की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर लोग इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा कर रहे हैं। ट्विटर और फेसबुक पर #CAGReport और #MediaSilence जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
एक यूजर ने लिखा,
“अगर मीडिया कैग रिपोर्ट पर चुप्पी साधे हुए है, तो जनता को जागरूक होना होगा।”
वहीं, कुछ यूजर्स ने मीडिया पर सरकार के पक्ष में खबरें चलाने का आरोप लगाया।
कैग की रिपोर्ट जैसे संवेदनशील मुद्दों पर मीडिया की चुप्पी लोकतंत्र के लिए चिंताजनक संकेत है। मीडिया की भूमिका सरकार और जनता के बीच एक सेतु की होती है, लेकिन जब वही मीडिया निष्पक्षता खोने लगे, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है।
अब सवाल यह है कि क्या भारतीय मीडिया अपनी निष्पक्षता बनाए रखने में विफल हो रहा है, या यह केवल राजनीतिक दबाव का शिकार है? आने वाले समय में इस पर चर्चा और गहराएगी।