
हरियाणा हाउसिंग बोर्ड 54 साल बाद हुआ खत्म, HSVP में हुआ मर्ज
गुरुग्राम, 3 अप्रैल 2025 ,
हरियाणा हाउसिंग बोर्ड, जो पिछले 54 वर्षों से राज्य में सस्ते मकान मुहैया कराता था, अब समाप्त हो गया है। 1 अप्रैल 2025 से यह बोर्ड हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) में मर्ज कर दिया गया है। यह कदम राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की मंजूरी के बाद उठाया है।
इतिहास:
हरियाणा हाउसिंग बोर्ड की स्थापना 1971 में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. चौधरी बंसीलाल ने की थी, और इसका उद्देश्य था गरीबों को सस्ते मकान मुहैया कराना। इस बोर्ड ने अपने कार्यकाल में लगभग 1 लाख फ्लैट बेचे थे। बोर्ड की कार्यप्रणाली के अनुसार यह “नो प्रोफिट-नो लॉस” की नीति पर काम करता था, यानी इसका लक्ष्य न तो लाभ कमाना था और न ही नुकसान करना।
हालांकि, वर्षों के दौरान हाउसिंग बोर्ड की आर्थिक स्थिति खराब हो गई, और फ्लैट्स की क्वालिटी पर भी सवाल उठने लगे। इस स्थिति को देखते हुए, राज्य सरकार ने इसे समाप्त करने का निर्णय लिया।
वर्तमान स्थिति:
1 अप्रैल 2025 को बोर्ड की समाप्ति के बाद इसे HSVP (हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण) में मर्ज कर दिया गया। इस प्रक्रिया के तहत 200 करोड़ रुपये का समझौता हुआ है।
बोर्ड के पास वर्तमान में 300 एकड़ जमीन पड़ी हुई है, जो 30 स्थानों पर फैली हुई है, लेकिन इसका अब तक कोई उपयोग नहीं किया गया है।
खाली पड़े फ्लैट्स:
हाउसिंग बोर्ड ने 1 लाख फ्लैट बनाए थे, लेकिन उनमें से लगभग 10,000 फ्लैट्स अभी भी खाली पड़े हैं, जो बोर्ड की बढ़ती समस्याओं का प्रतीक हैं।
समाप्ति का कारण:
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने इस बोर्ड की समाप्ति की मंजूरी दी थी, क्योंकि धीरे-धीरे बोर्ड की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई और फ्लैट्स की गुणवत्ता भी गिर गई थी। यह एक प्रमुख कारण था कि बोर्ड को समाप्त करने का निर्णय लिया गया।
आगे का रास्ता:
अब HSVP द्वारा यह सभी आवास योजनाएं और विकास कार्य संभाले जाएंगे। HSVP पहले ही शहरी विकास और आवास से संबंधित कार्यों को देखता है, और इस मर्जिंग से उम्मीद की जा रही है कि यह प्रक्रिया और भी सुसंगत और प्रभावी होगी।
मुख्य बिंदु:
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हाउसिंग बोर्ड की स्थापना: 1971 में स्व. चौधरी बंसीलाल द्वारा।
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उद्देश्य: गरीबों को सस्ते मकान मुहैया कराना (नो प्रोफिट-नो लॉस नीति)।
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बेचे गए फ्लैट्स: 1 लाख, लेकिन 10,000 से ज्यादा खाली पड़े हैं।
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मर्जिंग: अब HSVP में मर्ज किया गया, समझौता 200 करोड़ रुपये का।
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जमीन: 300 एकड़ जमीन अभी भी खाली पड़ी है, जिसका उपयोग नहीं हो रहा है।
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समाप्ति का कारण: आर्थिक स्थिति का खराब होना और फ्लैट्स की गुणवत्ता पर सवाल।