गौरक्षा दल ने विधायक आवास पर शुरू किया धरना और क्रमिक अनशन
भिवानी, 7 अप्रैल:
भिवानी में गौरक्षकों और नगर परिषद के कर्मचारियों के बीच एक बार फिर से तनातनी देखने को मिली। गौरक्षा दल के सदस्यों ने आज विधायक आवास के बाहर धरना और क्रमिक अनशन शुरू कर दिया। गौरक्षकों का आरोप है कि नगर परिषद के कर्मचारी घायल गायों और अन्य जानवरों के उपचार के लिए जिम्मेदारी से पीछे हट रहे हैं, जिससे उनके जीवन को खतरा हो रहा है।
गौसेवक संजय परमार ने आरोप लगाया कि नगर परिषद के कर्मचारी जानवरों के इलाज की जिम्मेदारी निभाने से मना कर रहे हैं। वे पशु क्रूरता अधिनियम 1960 की धारा 3 का पालन नहीं कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी अवहेलना कर रहे हैं। परमार ने कहा, “नगर परिषद के कर्मचारी घायल या बीमार गाय और अन्य जानवरों का उपचार करने में नकारे हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल पशु अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह एक गंभीर समस्या बन गई है।”
गौरक्षकों की प्रमुख मांग: गौरक्षकों की प्रमुख मांग है कि नगर परिषद और उसके कर्मचारियों को कानून के तहत घायल जानवरों का इलाज करने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। गौरक्षकों का कहना है कि यदि इस तरह के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो उनका संघर्ष जारी रहेगा और वे अपनी आवाज़ उठाते रहेंगे।
धार्मिक और कानूनी पक्ष: गौरक्षा दल के सदस्य यह भी कह रहे हैं कि गौ माता और अन्य पशु हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक हैं, और उनका उचित इलाज और देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है। साथ ही, वे यह भी जोर दे रहे हैं कि यह केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक कानूनी आवश्यकता भी है, जिसे भारत सरकार ने पशु क्रूरता अधिनियम के तहत स्थापित किया है।
विधायक से कार्रवाई की मांग: गौरक्षकों ने विधायक से भी इस समस्या को तुरंत सुलझाने की अपील की है। उनका कहना है कि यदि नगर परिषद के कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी निभाने से मना करते हैं, तो उन्हें कानूनी तरीके से जवाबदेह ठहराया जाए।
भिवानी में जारी आंदोलन: धरना और क्रमिक अनशन के साथ-साथ, गौरक्षकों का कहना है कि वे तब तक इस आंदोलन को जारी रखेंगे जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं। उनका मुख्य उद्देश्य यह है कि हर घायल और बीमार जानवर का इलाज समय पर किया जाए और जिम्मेदार कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो।
भिवानी में इस मुद्दे ने अब एक राजनीतिक और सामाजिक रूप भी ले लिया है, और यह देखने वाली बात होगी कि इस संघर्ष के बाद नगर परिषद और स्थानीय प्रशासन किस तरह से स्थिति को सुलझाते हैं।
यह घटना भिवानी में गौरक्षकों द्वारा उठाए गए एक महत्वपूर्ण मुद्दे को दर्शाती है, जिसमें पशुओं के अधिकारों की सुरक्षा और उपचार के लिए कानूनी और सामाजिक दवाब बनाया जा रहा है।