
एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को अयोध्या में राम मंदिर के पुनर्निर्माण पर बैठक आयोजित करने के कारण निलंबित किया गया था।
लखनऊ उत्तर 19 मई। समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं के राम मंदिर के प्रति दृष्टिकोण और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार की नीतियों के बीच स्पष्ट अंतर दिखाई देता है।
समाजवादी पार्टी का दृष्टिकोण:
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोपाल यादव ने 2024 में अयोध्या के राम मंदिर को “बेकार और वास्तु के अनुसार न बने होने की टिप्पणी की थी, जिससे विवाद उत्पन्न हुआ। इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे सनातन धर्म का अपमान करार दिया और विपक्षी दलों को हिंदू विरोधी बताया।
सपा सरकार के दौरान, 2013 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को अयोध्या में राम मंदिर के पुनर्निर्माण पर बैठक आयोजित करने के कारण निलंबित किया गया था।
योगी सरकार की नीतियाँ:
सरकार धार्मिक स्थलों के ऐतिहासिक पहलुओं की जांच में सक्रिय है।
वर्तमान में, योगी आदित्यनाथ की सरकार ने राम मंदिर निर्माण को एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का कार्य माना है। सरकार ने मंदिर निर्माण के लिए आवश्यक कदम उठाए हैं और इसे हिंदू आस्था का प्रतीक बताया है। इसके अलावा, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल की जामा मस्जिद में मंदिर होने के संकेतों के सर्वे को सही ठहराया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार धार्मिक स्थलों के ऐतिहासिक पहलुओं की जांच में सक्रिय है।
समाजवादी पार्टी और योगी सरकार के दृष्टिकोण में स्पष्ट अंतर है। जहां सपा के नेता राम मंदिर को लेकर आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, वहीं योगी सरकार इसे धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक पुनर्निर्माण के रूप में प्रस्तुत करती है। यह अंतर भारतीय राजनीति में धर्म और राजनीति के संबंधों को समझने में सहायक है।