
पूरा विवरण दिया है, वह वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में चल रही एक महत्वपूर्ण सुनवाई की ओर इशारा करता है, जिसमें वक्फ अधिनियम (Waqf Act) और उसकी व्याख्या पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अदालत में दलीलें दीं, और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ और अन्य जजों की बेंच के तीखे सवालों का उन्हें सामना करना पड़ा। हालांकि आपने CJI का नाम “बी. आर. गवई” बताया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ हैं और बी. आर. गवई जज बेंच में दूसरे नंबर पर हैं, जो सही हो सकता है अगर उन्होंने विशेष रूप से यह सवाल पूछा हो।
विवाद का मुख्य बिंदु क्या है?
वक्फ अधिनियम के तहत मुस्लिम धर्मावलंबियों द्वारा दान की गई संपत्तियों को धार्मिक या चैरिटेबल उपयोग के लिए सुरक्षित किया जाता है। लेकिन वर्तमान में जो संशोधन और विवाद है, वह इन बिंदुओं के इर्द-गिर्द है:
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यदि कोई संपत्ति ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) द्वारा संरक्षित घोषित हो जाती है, तो क्या वह अब भी वक्फ संपत्ति मानी जाएगी?
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क्या ASI के अधीन आने से उस स्थान पर धार्मिक गतिविधियाँ, जैसे प्रार्थना या इबादत, करना रुक जाएगा?
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क्या इससे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है?
CJI ने क्या सवाल पूछा?
मुख्य न्यायाधीश (या न्यायमूर्ति बी. आर. गवई) ने कपिल सिब्बल से सीधा सवाल किया:
“क्या वक्फ प्रॉपर्टी ASI के अधीन आने से धर्म पालन का अधिकार छिन जाता है?”
कपिल सिब्बल की प्रतिक्रिया:
कपिल सिब्बल का तर्क था कि:
“अगर कोई संपत्ति ASI संरक्षित हो जाती है, तो वह वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी।”
CJI ने पलटकर पूछा:
“क्या इससे आपका अपने धर्म का पालन करने का अधिकार छिन जाता है?”
इस पर सिब्बल ने कहा:
“अगर किसी संपत्ति की वक्फ मान्यता ही खत्म हो जाती है, तो मैं वहां कैसे जा सकता हूं?”
लेकिन कोर्ट का तर्क था:
“हमने ASI संरक्षित खजुराहो मंदिर में पूजा होते हुए देखा है। क्या उस संरक्षित होने से वहां प्रार्थना करना बंद हुआ?”
अदालत का संदेश
CJI का इशारा इस ओर था कि सिर्फ इसलिए कि कोई स्थल ASI द्वारा संरक्षित है, इसका मतलब यह नहीं कि वहां धार्मिक गतिविधियाँ नहीं हो सकतीं। और यदि धार्मिक गतिविधियाँ जारी रहती हैं, तो धार्मिक स्वतंत्रता का हनन नहीं माना जा सकता।
निष्कर्ष
इस सुनवाई में कपिल सिब्बल का तर्क था कि ASI द्वारा संरक्षित होने पर वक्फ की कानूनी मान्यता खत्म हो जाती है और धार्मिक अधिकार प्रभावित होते हैं। वहीं कोर्ट ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि संरक्षित स्थल भी धार्मिक गतिविधियों के लिए खुले हो सकते हैं, और इस वजह से धार्मिक अधिकार खत्म नहीं होते।
यह एक संवेदनशील और जटिल कानूनी मामला है जो धार्मिक अधिकारों, संविधान के अनुच्छेद 25-26, और वक्फ अधिनियम की कानूनी व्याख्या के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है।