
औद्योगिक क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित, उद्योगपति जताते हैं चिंता सेक्टर-37 के उद्योगपति दीपक मैनी ने नाराजगी जताते हुए कहा, "गुरुग्राम में आईएएस अफसरों की फौज है, लेकिन जब बरसात होती है, तो पानी की निकासी न के बराबर होती है। सेक्टर-37 में हर बार कंपनियों के भीतर पानी घुस जाता है जिससे भारी नुकसान होता है।"
पिछले साल लगभग ₹70 करोड़ खर्च किए थे
गुरुग्राम, 17 जून 2025: देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के सबसे समृद्ध जिलों में शामिल गुरुग्राम मामूली बरसात में एक बार फिर जलमग्न हो गया। सोमवार शाम को हुई हल्की बारिश ने गुरुग्राम नगर निगम, मानेसर नगर निगम और जीएमडीए (GMDA) के सभी विकास कार्यों की पोल खोल कर रख दी।
हर वर्ष 35 से 40 करोड़ रुपए केवल वर्षा जल निकासी पर खर्च करने के बावजूद शहर की मुख्य सड़कें और सेक्टर जलभराव से बेहाल हैं।
सिग्नेचर टॉवर से लेकर सेक्टरों तक सड़कों ने लिया तालाब का रूप
शहर के सिग्नेचर टॉवर, सेक्टर 29, 35 और 39 जैसे प्रमुख इलाकों में हल्की बरसात के बाद ही जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो गई। सड़कों पर बच्चों को पानी में खेलते, साइकिल व बाइक सवारों को पानी से गुजरते देखा गया, मानो गुरुग्राम की एजेंसियों को तलाश रहे हों।
विशेष बात यह है कि दिल्ली-जयपुर हाईवे पर भी वर्षा जल निकासी को लेकर नेशनल हाईवे अथॉरिटी, नगर निगम और जीएमडीए ने पिछले साल लगभग ₹70 करोड़ खर्च किए थे, और इस साल भी सूत्रों के अनुसार करीब ₹1 करोड़ का बजट निर्धारित है। फिर भी हालात सुधरने के बजाय हर साल और बिगड़ते जा रहे हैं।
बैठकों का असर नदारद, जिम्मेदार एजेंसियां नाकाम
पिछले वर्षों में जलभराव की गंभीरता को देखते हुए कैबिनेट मंत्री राव नरबीर सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, विधायक मुकेश शर्मा, और जिला प्रशासन के आला अधिकारी GMDA व नगर निगम के अधिकारियों के साथ कई बैठकें कर चुके हैं। लेकिन नतीजा हर साल वही — बरसात में गुरुग्राम की सड़कें झील में तब्दील हो जाती हैं।
औद्योगिक क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित, उद्योगपति जताते हैं चिंता
सेक्टर-37 के उद्योगपति दीपक मैनी ने नाराजगी जताते हुए कहा,
“गुरुग्राम में आईएएस अफसरों की फौज है, लेकिन जब बरसात होती है, तो पानी की निकासी न के बराबर होती है। सेक्टर-37 में हर बार कंपनियों के भीतर पानी घुस जाता है जिससे भारी नुकसान होता है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम के अधिकारियों को बुलाने पर भी वे मौके पर नहीं पहुंचते।
नेशनल हाईवे अथॉरिटी भी जिम्मेदारी से पीछे
फ्लाईओवर के बेसमेंट में पानी भरने, वाहन डूबने और हादसे होने के बावजूद नेशनल हाईवे अथॉरिटी की ओर से कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं होती। कई घटनाओं में साइकिल सवारों की जान तक जा चुकी है।
सरकार की पीठ थपथपाना या ज़मीनी समाधान?
जनता का आरोप है कि हर बार भारी बजट और अधिकारियों की वाहवाही तो होती है, लेकिन जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं आता। हर मानसून से पहले बैठकें होती हैं, लेकिन नतीजा वही — गुरुग्राम डूबता है।
मेदांता अस्पताल के बाहर भी भरा पानी, बच्चों ने लगाई डुबकी
मेदांता अस्पताल के पास सड़क पर इतना पानी भर गया कि वहां मौजूद मजदूरों के बच्चे उसमें खेलते और डुबकी लगाते नजर आए। लेकिन इन तस्वीरों के बावजूद अधिकारी बेपरवाह दिखाई दिए।
कोई जवाब देने को तैयार नहीं
जब मानेसर नगर निगम और गुरुग्राम नगर निगम के अधिकारियों से सवाल किया कि हर साल पानी निकासी पर कितना पैसा खर्च होता है और क्या योजना है, तो कोई ठोस जवाब नहीं मिला। इससे साफ है कि पारदर्शिता का अभाव और जिम्मेदारी से बचाव प्रशासन की कार्यप्रणाली का हिस्सा बन चुका है।
गुरुग्राम का ‘विकास’ पानी में डूबा
जब तक सरकारी एजेंसियां कागज़ी योजनाओं की बजाय जमीनी क्रियान्वयन पर ध्यान नहीं देंगी, तब तक गुरुग्राम की पहचान IT हब से ज्यादा ‘जलभराव राजधानी’ बनती जाएगी। करोड़ों की योजनाएं तब तक बेकार हैं, जब तक आम नागरिक को राहत न मिले।