
अवैध रूप से संचालित हो रहे ढाबों ने इस हाईवे को ‘खूनी सड़क’ बना दिया है।
गुरुग्राम, 23 जून।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट पलवल-मानेसर-कुंडली एक्सप्रेसवे (KMP Expressway) आज अपनी मूल भावना और उद्देश्य से भटक चुका है। कभी जिस हाईवे को उत्तरी भारत की ट्रैफिक रीढ़ माना गया था, आज वह जानलेवा हादसों की कब्रगाह बन गया है। सड़क की जर्जर हालत, जगह-जगह बने गहरे गड्ढे, और एक्सप्रेसवे किनारे फर्जी व अवैध रूप से संचालित हो रहे ढाबों ने इस हाईवे को ‘खूनी सड़क’ बना दिया है।
🚧 गड्ढों से पट चुका है एक्सप्रेसवे, गांव की पगडंडियों से भी बुरी हालत
देश के सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक कॉरिडोरों में से एक माने जाने वाले KMP एक्सप्रेसवे की हालत ऐसी हो गई है कि अब इस पर गाड़ी चलाना मौत को दावत देने जैसा बन गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हाईवे पर गहरे गड्ढे इतने ज्यादा हो गए हैं कि बड़ी गाड़ियाँ भी अनियंत्रित होकर पलट रही हैं।
“हर महीने 20 से 25 लोग जान गंवा रहे हैं”
स्थानीय निवासियों विजय कुमार, रमेश और राजेंद्र सिंह का कहना है कि इस हाईवे पर दुर्घटनाएं रोज़मर्रा की बात हो चुकी हैं। औसतन हर महीने 20 से 25 लोगों की जान चली जाती है। एक्सप्रेसवे के दोनों ओर अतिक्रमण कर बनाए गए अवैध ढाबे इसका मुख्य कारण हैं।
☕ अवैध ढाबों की भरमार, सड़क पर खड़ी गाड़ियाँ बनती हैं मौत की वजह
हाईवे के किनारे बने ढाबों पर भारी वाहन, कारें और दोपहिया वाहन अक्सर रुकते हैं, जिससे सड़क संकरी हो जाती है और तेज़ रफ्तार में चल रही गाड़ियाँ टकरा जाती हैं।
स्थानीयों का आरोप है कि ये ढाबे न केवल अवैध हैं बल्कि इनसे प्रशासन और कुछ प्रभावशाली लोग मोटी कमाई कर रहे हैं।
लोग यह जानना चाहते हैं कि:
-
इन ढाबों को चलाने की अनुमति किसने दी?
-
क्या ये किसी सरकारी संरक्षण में फल-फूल रहे हैं?
-
टोल प्लाज़ा के पास भी अवैध निर्माण क्यों नजर आता है?
📂 मुख्यमंत्री की टेबल पर महीनों से धूल फांक रही है एक्सप्रेसवे की फाइल
सूत्रों के अनुसार इस एक्सप्रेसवे के सुधार और मरम्मत से जुड़ी टेंडर फाइल कई महीनों से मुख्यमंत्री कार्यालय में लंबित पड़ी है।
हर बार जब अधिकारियों से पूछा जाता है, तो यही जवाब मिलता है कि फाइल मुख्यमंत्री की टेबल पर है।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही है या जानबूझकर की जा रही अनदेखी?
🚨 मंत्री तक हादसे का शिकार होते-होते बचे
हरियाणा के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री अनिल विज स्वयं भी इस सड़क पर यात्रा के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने से बाल-बाल बचे, फिर भी सरकार की आंखें नहीं खुलीं। यह दर्शाता है कि सिस्टम में संवेदनहीनता किस कदर हावी हो चुकी है।
📞 प्रशासन की चुप्पी, जवाब देने से कतरा रहे अधिकारी
जब इस बारे में जिला उपायुक्त अजय कुमार से संपर्क किया गया, तो उन्होंने फोन उठाने से परहेज़ किया। इससे साफ है कि प्रशासन सवालों से भाग रहा है और जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं।
❗ जनता का सवाल: क्या और लाशें गिरने के बाद जागेगी सरकार?
एक्सप्रेसवे की वर्तमान स्थिति राज्य और केंद्र सरकार दोनों की जवाबदेही पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। क्या इस “ड्रीम प्रोजेक्ट” को “डेड प्रोजेक्ट” बनने से कोई रोक पाएगा?
जनता की मांग है कि:
-
सड़क की तत्काल मरम्मत की जाए।
-
अवैध ढाबों को हटाया जाए।
-
दुर्घटना में मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा मिले।
-
फाइल लटकाने वाले अफसरों पर कार्रवाई हो।