
बिहार के मंत्री अशोक चौधरी को मिली बड़ी शैक्षणिक सफलता, सहायक प्रोफेसर के पद पर चयनित हार्वर्ड तक पहुंचा शोध कार्य ?
Hightlights
राजनीति के साथ शिक्षा में भी दिलचस्पी
कांग्रेस ने कहा मंत्री को रोजगार युवा बेरोजगार
57 साल की उम्र में प्रोफेसर बने अशोक चौधरी
मंत्री को नौकरी, बेरोजगार युवा विपक्ष का तंज
बिहार सरकार में मंत्री और जदयू के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी इन दिनों एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार कारण कोई राजनीतिक बयान या चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि शिक्षा जगत में मिली उनकी बड़ी उपलब्धि है। बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने अशोक चौधरी को सहायक प्रोफेसर के पद के लिए चयनित किया है। यह नियुक्ति उन्हें अनुसूचित जाति कोटे के तहत मिली है।57 वर्षीय अशोक चौधरी ने जानकारी दी कि उन्होंने इस पद के लिए आवेदन वर्ष 2020 में किया था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे अपनी राजनीतिक भूमिका जारी रखेंगे और इस पद से कोई वेतन नहीं लेंगे। चौधरी ने कहा, “मैंने राजनीति में आने से पहले पीएचडी पूरी कर ली थी। मेरे पिता चाहते थे कि मैं एक मजबूत बौद्धिक आधार के साथ राजनीति में उतरूं, इसलिए मैंने शिक्षा को गंभीरता से लिया।”अशोक चौधरी एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता महावीर चौधरी 1980 के दशक में कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके थे। वहीं उनकी बेटी शांभवी चौधरी वर्तमान में समस्तीपुर से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सांसद हैं। इस प्रकार अशोक चौधरी राजनीति और शिक्षा — दोनों क्षेत्रों में एक अलग पहचान रखते हैं।अशोक चौधरी ने बताया कि शिक्षा और शोध के प्रति उनकी रुचि वर्षों पुरानी है। उन्होंने अनुसूचित जाति की महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर गहन शोध किया है। उनका यह शोध न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है। चौधरी ने बताया, “हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने मुझे अनुसूचित जाति की महिलाओं पर मेरा शोध प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया था। यह मेरी पीएचडी का विषय भी था।”
उन्होंने आगे कहा, “जब 2020 में बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने सहायक प्रोफेसर पद के लिए आवेदन मांगे, तो मैंने बिना हिचकिचाए अप्लाई किया। अब मुझे यह सूचना मिली है कि मेरा चयन हुआ है।”इस नियुक्ति पर राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई है। कांग्रेस पार्टी ने इस पर तंज कसते हुए कहा है कि जब राज्य के युवा नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं, तब एक मौजूदा मंत्री को प्रोफेसर की नियुक्ति मिल रही है। कांग्रेस प्रवक्ताओं ने आरोप लगाया कि यह ‘आरएसएस कोटे’ से की गई नियुक्ति है। हालांकि, इस बयान पर अशोक चौधरी की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। अशोक चौधरी की यह उपलब्धि शिक्षा और राजनीति के बीच संतुलन बनाने का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि जनसेवा के साथ-साथ शिक्षा में भी योगदान दिया जा सकता है, बशर्ते नीयत और प्रयास ईमानदार हों।