
फिर तो रेवाड़ी के मानो भाग्य ही जाग गए, 1987 तक कर्नल राम सिंह लगातार कैबिनेट मंत्री, विधानसभा स्पीकर पदों पर आसीन रहे ।
फिर तो रेवाड़ी के मानो भाग्य ही जाग गए, 1987 तक कर्नल राम सिंह लगातार कैबिनेट मंत्री, विधानसभा स्पीकर पदों पर आसीन रहे ।
रेवाड़ी 8 अगस्त। आपातकाल के बाद 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में अपने पारिवारिक कारणों से भारतीय सेना का उत्कृष्ट कार्यकाल समय से पूर्व छोड़कर राजनीति में आए कर्नल राम सिंह ने जनता पार्टी की टिकट पर एक कांटे के मुकाबले में सिर्फ 83 वोट के अंतर से रेवाड़ी विधानसभा का चुनाव जीत लिया । अपनी दबंग छवि और प्रशासनिक अनुभव के कारण पहली बार विधायक बने कर्नल हरियाणा कैबिनेट में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री बने । फिर तो रेवाड़ी के मानो भाग्य ही जाग गए, 1987 तक कर्नल राम सिंह लगातार कैबिनेट मंत्री, विधानसभा स्पीकर पदों पर आसीन रहे । उल्लेखनीय है कि स्वाधीनता के बाद 1952 से 1977 तक हुए चुनावों में रेवाड़ी विधानसभा का अस्तित्व निरंतर बना रहा लेकिन यहां से निर्वाचित विधायक कभी राज्यमंत्री मंडल में शामिल नही हो पाया। 1987 में विधानसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चौ देवी लाल की आँधी में हार गए । 1989 में कांग्रेस टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, रेवाड़ी विधानसभा का उप चुनाव भी साथ था जिस में कप्तान अजय को लोकदल भाजपा गठजोड़ चुनावी रेस से बाहर मान रहा था, कर्नल बेशक अपना पहला संसदीय चुनाव बहुत कम वोट से हार गए लेकिन अपने समर्थकों की बदौलत कप्तान को विधायक बनवाने में कामयाब रहे क्योंकि कर्नल का रेवाड़ी विधानसभा सीट पर जीत का जो आंकड़ा था कप्तान भी उतनी ही वोटों से जीता।1991 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में एक बार फिर रेवाड़ी का भाग्य चमकने लगा । कर्नल राम सिंह सांसद और केंद्र में मंत्री बन गए, रेवाड़ी से विधायक कप्तान अजय सिंह यादव हरियाणा मंत्रिमंडल का हिस्सा बने ।
अरकान मोर्चे पर जापान के खिलाफ लड़ाई लड़ी । सिंगापुर और मलाया की स्वाधीनता लड़ाई में भी भाग लिया ।
9 अगस्त 1925 को सादत नगर नयागांव जिला रेवाड़ी निवासी कप्तान हरि सिंह के घर कर्नल राम सिंह का जन्म हुआ था।1932 से 1937 तक प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के प्रतिष्ठित माडर्न स्कूल के बाद उन्होंने रॉयल इंडियन मिलिट्री देहरादून से 1943 में अपनी सीनियर कैंब्रिज परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की । 1944 में कमीशन प्राप्त कर सेना में अपने करियर की शुरुआत की । सर्विस के दौरान ही उन्होंने डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज वेलिंगटन से स्नातक की डिग्री हासिल की । स्वाधीनता पूर्व बर्मा में अरकान मोर्चे पर जापान के खिलाफ लड़ाई लड़ी । सिंगापुर और मलाया की स्वाधीनता लड़ाई में भी भाग लिया । स्वाधीनता के बाद 1947 -48 के जम्मू कश्मीर ऑपरेशन, 1962 भारत चीन युद्ध तथा 1965 में रनकछ के मैदान में पाकिस्तान सेना के दांत खट्टे किए । पैराशूट बटालियन की कमान करते हुए ईच्छूगिल कनाल का मोर्चा फतह किया । सर्विस काल में उन्होंने शाह ईरान के स्टाफ तथा अंतरराष्ट्रीय कमीशन पर वियतनाम में सुपरविजन व कंट्रोल की महत्वपूर्ण सेवाएं भी प्रदान की थी । हिंदी ,अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू ,नेपाली तथा फ्रेंच भाषाओं के ज्ञाता कर्नल राम सिंह ने 18 नवंबर 1968 को सेना से रिटायरमेंट ले ली थी । 18 नवंबर का दिन उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया।18 नवंबर 1962 को भारत चीन युद्ध के दौरान लेह लद्दाख की सामरिक रेजांगला पोस्ट पर मेजर शैतान सिंह भाटी परमवीर चक्र की कमान में 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के अहीर जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर दुश्मन के 10 गुना अधिक सैनिकों को मौत के घाट उतार एक नया इतिहास रचा लेकिन इलाके व कौम की इस बहादुरी को उजागर नहीं होने दिया गया। 1980 के दशक में इस पीड़ा को 13 कुमाऊं के पूर्व सैनिकों और सिविल सोसाइटी के जागरूक नागरिकों ने जब उजागर करने का बीड़ा उठाया तब कर्नल राम सिंह ने आगे बढ़कर इस मुहिम को संरक्षण प्रदान किया और रेजांगला शौर्य समिति, रेजांगला ट्रस्ट जैसे महत्वपूर्ण संगठन खड़े किए जिनके कार्यों की धूम आज देश विदेश में चर्चित रहती है ।
कर्नल दो बार विधायक और दो बार सांसद बनें।
उन्हें अपनी जनता और खुद पर इतना विश्वास था तभी चुनावी मौसम में वह अक्सर अपने समर्थकों से कहते थे
1996 में पहली बार दिल्ली से लेकर राजस्थान बॉर्डर नांगल चौधरी तक कमल का फूल खिलाकर महेंद्रगढ़ संसदीय सीट पर सांसद बनने का भी कर्नल राम सिंह ने एक अध्याय लिखा। 1998 मैं अपना अंतिम संसदीय चुनाव हार गए लेकिन रेजांगला शौर्य दिवस समारोह की चमक को उन्होंने अंतिम सांस तक रोशन रखने का कार्य किया। विधानसभा के तीन और लोकसभा के चार चुनाव जनता पार्टी, कॉंग्रेस बाबू जगजीवन राम, निर्दलीय, कांग्रेस और भाजपा की टिकट पर अपनी दबंगई और जुझारूपन से लड़ कर्नल दो बार विधायक और दो बार सांसद बनें। उन्हें अपनी जनता और खुद पर इतना विश्वास था तभी चुनावी मौसम में वह अक्सर अपने समर्थकों से कहते थे कि टिकट और मंत्री पद मेरी जेब में हैँ,किसी हदतक उन्होंने यह साबित कर के भी दिखाया। अपने राजनीतिक विरोधी को उस के घर में जाकर मात देना और अपने समर्थकों के लिए सभी हद पार कर देना उनकी खाशियत में शामिल रही। 30 जनवरी 2012 को अपनी सांसारिक यात्रा पूरी कर वे स्वर्ग सिधार गए । इसे सन्योग कहें या भाग्य की मार उनके जाने के बाद एक बार फिर पिछले 11 साल से रेवाड़ी मंत्री पद को सत्ता में रहकर भी तरस रही है । गुरुग्राम और महेंद्रगढ़ दोनों संसदीय क्षेत्रों में आज भी कर्नल के चाहने वालों की भरमार है जो उनके नेतृत्व को याद कर रोमांचित हो जाते हैं ।