
Patna 13 October 2025 / दोस्तों… बिहार की राजनीति में सब कुछ बदल गया है।
एनडीए की सीटें बंट गई, चेहरे बदल गए।
और अब सबसे बड़ा सवाल उठ गया है
क्या ये सीट शेयरिंग NDA की मजबूती का सबूत है… या कमजोरी का संकेत?क्योकि जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा दोनों का दर्द छलका है।
बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं, और NDA ने फॉर्मूला फाइनल कर दिया है
बीजेपी — 101 सीटें
जेडीयू — 101 सीटें
एलजेपी (चिराग पासवान) — 29 सीटें
हम (जीतन राम मांझी) — 6 सीटें
आरएलएम (उपेन्द्र कुशवाहा) — 6 सीटें
यानि कुल कुल 243 सीटों का समीकरण फ़ाइनल हो गया
लेकिन सवाल अब भी रह गए हैं
इतनी सीटें चिराग पासवान को क्यों?
बीजेपी और जेडीयू ने खुद को क्यों काटा?
क्या ये राजनीतिक मजबूरी है या दिल्ली का दबाव?
और सबसे बड़ा सवाल — क्या चिराग पासवान वाकई बिहार का Kingmaker बन गए हैं?
एक आदमी की मौजूदगी ने पूरे बिहार का समीकरण बदल दिया है।
आज हम उसी का जवाब ढूंढेंगे — हर आंकड़ा, हर चाल, पूरा हिसाब-किताब।
BJP और JDU — दोनों बड़ी पार्टियां
2020 की हार को याद करके, इस बार सीटें कम कर दी हैं। BJP उस वक्त 110 पर लड़ी थी अब → 101,पर लड़ेगी ,,,,JDU ,,,,115 पर लड़ी थी अब → 101
अब सोचिए
क्यों चिराग पासवान, जिनकी बिहार में एक भी विधायक नहीं है,
उन्हें 29 सीटें दी गई?
सवाल उठता है
क्या ये मोदी–चिराग के रिश्ते का असर है?
क्या बीजेपी ने चिराग को सीटें देकर NDA की स्थिरता दिल्ली में खरीदी?
क्या एक ऐसा नेता जो विधानसभा में प्रतिनिधित्व नहीं रखता, इतना बड़ा गेम चेंजर बन सकता है?
लोकसभा में NDA के कुल 293 सांसद है जिसमे BJP के – 240,,,,,JDU के 12,,,,,,TDP के 16 ,,,,,,,Shiv Sena यानी (Eknath Shinde) के 7 और LJP(R) यानि चिराग पासवान के 5
इसलिए, बिहार में थोड़ी कुर्बानी देकर
BJP ने दिल्ली में गठबंधन को मजबूत रखा।
चिराग पासवान के पास बिहार में विधायक नहीं,
लेकिन उनके नाम के साथ केंद्र में अहमियत जुड़ी है।
ये ही वजह है कि NDA ने उन्हें 29 सीटें दे दीं।
अब सवाल है की क्या,,, चिराग की यह पावर असली है या सिर्फ दिल्ली की रणनीति?
क्या 29 सीटों का आंकड़ा वोटर पर असर डालेगा, या वोटर इसे ‘बदलाबाज़ी’ समझ कर विरोध करेगा?
क्या चिराग का कद JDU और BJP के बीच दरार पैदा करेगा?
याद रखें — Kingmaker वही है जो निर्णायक बदलाव लाए।
तो क्या चिराग वही रोल निभाएंगे, या सिर्फ दिखावा है?
2020 में एलजेपी NDA का हिस्सा नहीं था।
135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और JDU को भारी नुकसान हुआ।
JDU ने 115 सीटों पर लड़ा, सिर्फ़ 43 सीटें जीत पाई।
इसलिए इस बार JDU ने 101 सीटों पर समझौता किया।
नीतीश कुमार के लिए ये बड़ा भाई का रोल निभाने का मौका भी था।लेकिन नहीं हुआ।
सवाल यह है की
क्या JDU ने अपने वोट बैंक की कुर्बानी दी?
क्या संतुलन सिर्फ़ दिखावा है या असली रणनीति?
जीतन राम मांझी को 6 सीटें मिली (मांगी थी 15-20)उपेन्द्र कुशवाहा – 6 सीटें (मांगी 10)दोनों खुश तो दिख रहे है लेकिन चेहरे दिल नहीं ,,,,जीतन राम मांझी ने कहा है की हमें अपने पार्टी को मान्यता दिलाने के लिए 15 सिटी चाहिए थे ,,,,हम अपमानित महसूस करते है क्योकि मान्यता प्राप्त न होने से इलेक्शन कमिश्नर की मीटिंग में नहीं बुलाया जाता
वही उपेंद्र कुशवाहा ने पोस्ट किया है जिसमें लिखा है आज बादलों ने फिर साजिश की ,,,जहाँ मेरा घर था वहीं बारिश की ,,अगर पलक को जिद है बिजलियाँ गिराने की तो हमें भी जिद है वही पर आसिया बसने की ,,,,ये ट्वीट साफ संकेत देता है की वो कितने नाराज है
मांझी को परिवार की मनपसंद सीटें और केंद्रीय कद बढ़ाने का वादा देकर मनाया गया।
RLM को 6 सीटें दी गई क्योंकि 2020 में उन्होंने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट के साथ 99 सीटों पर चुनाव लड़ा, पर कोई जीत नहीं पाई।
सवाल ये है
क्या छोटे दलों की कमजोरी NDA की ताकत में बदली?
क्या मांझी और कुशवाहा के वोट बैंक चिराग के 29 सीटों के साथ मिलकर फायदा देंगे, या वोट बंटेंगे?
लोकसभा चुनाव 2024 को आधार बनाकर विधानसभा की सीटें बांटी गईं।
बिहार में लोकसभा सीटों की बात करे तो BJP के पास 17 , JDU 12 पर LJP यानि चिराग के पास 5 सीट है HAM 1और RLM के पास 1 सीट है
क्या ये गणित जमीन पर काम करेगा?
क्या जातीय और क्षेत्रीय समीकरण इसे चुनौती देंगे?
BJP ने Yogi Adityanath की तैनाती की है बिहार में 50 रैलियां करेंगे
बीजेपी का मकसद है पिछली बार हारी हुई 35 सीटें वापस जीतना।