दिल्ली, 16 दिसंबर 2025
भारत की शिक्षा व्यवस्था को 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने संसद में ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक 2025’ पेश किया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को यह विधेयक संसद में प्रस्तुत किया।
यह बिल विशेष रूप से उच्च शिक्षा (Higher Education) से जुड़ा है और इसके लागू होने के बाद देश की शिक्षा व्यवस्था को अधिक सरल, पारदर्शी, जवाबदेह और गुणवत्तापूर्ण बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। सरकार का मानना है कि शिक्षा किसी भी देश के विकास की रीढ़ होती है और वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में यह विधेयक अहम भूमिका निभाएगा।
मौजूदा व्यवस्था में क्या थी समस्या?
अब तक भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था पर कई अलग-अलग संस्थाओं का नियंत्रण रहा है, जैसे—
UGC (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग), AICTE और NCTE।
इन सभी संस्थाओं के अलग-अलग नियम, प्रक्रियाएं और अधिकार होने के कारण पूरा सिस्टम जटिल हो गया था।
इसका असर यह हुआ कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को बार-बार अनुमति और मान्यता के लिए अलग-अलग संस्थानों के चक्कर लगाने पड़ते थे। वहीं, छात्रों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता और डिग्री की मान्यता को लेकर भ्रम बना रहता था।
‘विकसित भारत शिक्षा बिल’ का उद्देश्य इसी उलझन को खत्म कर एक एकीकृत और मजबूत ढांचा तैयार करना है।
नई व्यवस्था: तीन प्रमुख परिषदें
इस विधेयक के तहत उच्च शिक्षा के नियमन के लिए एक नई व्यवस्था बनाई जाएगी, जिसमें तीन प्रमुख परिषदें होंगी। इन परिषदों की जिम्मेदारियां स्पष्ट रूप से तय की जाएंगी ताकि काम का बंटवारा साफ रहे और किसी तरह का भ्रम न हो।
1️⃣ नियामक परिषद (Regulatory Council)
यह परिषद कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की निगरानी करेगी।
इसके प्रमुख कार्य होंगे—
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संस्थानों का नियमों के अनुसार संचालन सुनिश्चित करना
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वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता बनाए रखना
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छात्रों और शिक्षकों की शिकायतों का समाधान
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शिक्षा को केवल मुनाफे का साधन बनने से रोकना
2️⃣ प्रत्यायन परिषद (Accreditation Council)
यह परिषद शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता की जांच करेगी।
इसके अंतर्गत—
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कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को मान्यता देना
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परिणाम आधारित गुणवत्ता मानक तय करना
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मान्यता देने वाली एजेंसियों की सूची तैयार करना
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किस संस्थान को कितनी मान्यता मिली है, इसकी जानकारी सार्वजनिक करना
3️⃣ मानक परिषद (Standards Council)
यह परिषद शिक्षा और शिक्षण से जुड़े मानक तय करेगी।
इसके प्रमुख कार्य—
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पाठ्यक्रम और सीखने के परिणामों का स्तर तय करना
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एक संस्थान से दूसरे संस्थान में क्रेडिट ट्रांसफर के नियम बनाना
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छात्रों की शैक्षणिक गतिशीलता को आसान बनाना
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शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता और मानक निर्धारित करना
सख्त प्रावधान और दंड
इस विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि कोई कॉलेज या विश्वविद्यालय नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।
फर्जी कॉलेजों, मनमानी फीस वसूली और भ्रामक विज्ञापनों जैसे मामलों पर सख्ती की जाएगी। इससे संस्थानों पर दबाव रहेगा कि वे शिक्षा की गुणवत्ता से कोई समझौता न करें।
छात्रों को क्या होंगे फायदे?
‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक’ से छात्रों को कई महत्वपूर्ण लाभ मिलने की उम्मीद है—
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शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार
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डिग्री और क्रेडिट की पूरे देश में मान्यता
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एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज में जाना आसान
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शिकायतों का तेज़ और पारदर्शी समाधान
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शिक्षकों के लिए तय न्यूनतम योग्यता से पढ़ाई का स्तर बेहतर होना
आलोचना और सरकार का पक्ष
कुछ शिक्षा विशेषज्ञों और संगठनों का मानना है कि इस विधेयक से केंद्र सरकार का नियंत्रण बढ़ सकता है, जिससे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है।
हालांकि, सरकार का कहना है कि इस विधेयक का उद्देश्य नियंत्रण बढ़ाना नहीं, बल्कि बेहतर नियमन, पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करना है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक 2025’ को भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था में एक ऐतिहासिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। यदि इसे सही तरीके से लागू किया गया, तो यह विधेयक शिक्षा को अधिक आधुनिक, विश्वसनीय और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएगा।
यह न केवल छात्रों और शिक्षकों के लिए लाभकारी साबित होगा, बल्कि भारत को एक ज्ञान-आधारित विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में भी मजबूत आधार तैयार करेगा।
