फिर जाट नेता को ही प्रदेश की कमान सोंपी जा सकती है
- चंडीगढ़, 19 जुलाई : हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने सोनीपत में कहा है कि जनता चाहेगी तो काम करेंगे, नहीं तो सोऐंंगे तान कर। अब राजनैतिक चर्चाकार इस पर गहन विचार एवं चिंतन करने में लग गए हैं। इस वक्तव्य के बारे में मनोविज्ञानिक आधार पर भी चिंतन है। हर कोई मुख्यमंत्री द्वारा कही गई इन दो लाइनों के बारे में अपने-अपने मतानुसार व्याख्या दे रहे हैं। एक बात तो बड़ी कॉमन है कि मुख्यमंत्री के दिमाग में कहीं न कहीं चुनाव में पार्टी के हार के बारे में चल तो रहा है। क्योकि अभी चुनाव दूर है पर पार्टी में मंथन चल रहा है। पार्टी स्तर पर नेता मीडिया में चाहे जो ब्यान देते रहे पर प्रशासन विरोधी लहर तो किसी-न-किसी स्तर पर चल ही रही है। अगर हम भाजपा कार्यकर्ताओं की बात करें तो वें सबसे अधिक दुखी हैं कि अपना राज होने के बाद में न तो अधिकारी उनकी सुनते हैं और न पार्टी के आला पदाधिकारी उनकी बात को गम्भीरता से ले रहे हैं। यही कारण है कि पार्टी की बैठकों में कार्यकर्ताओं और दूसरे दर्जे के पदाधिकारियों की हाजरी कम रहती है। यही स्थिति चुनाव केे समय भाजपा को भारी पड़ेगी। अगर कार्यकर्ताओं से आगे विधायकों की बात करें तो अधिकारी विधायकों का फोन तक नहीं उठाते। जबकि सभी जानते हैं कि विधानसभा के स्पीकर को इस बारे में कई बार शिकायत की जा चुकी है। जब लोगों के काम ही नहीं होंगे तो वोट कहां से मिलेगा। चर्चाकार इस स्थिति का एक कारण यह भी बताते हैं कि संगठन और सरकार मेें तालमेल का पूरी तरह से अभाव है। वैसे भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ओम पगकाश धनखड़ के आपसी व्यक्तिगत रिस्तों की हकीकत तो अब सबके सामने आ ही चुकी है। इन दोनो दिज्गज नेताओंं का ओरा मेल नहीं खाता। इसका खमियाजा पार्टी स्थानीय निकाय चुनाव में भुगत भी चुकी है। इन दोनों नेताओं को अपनी-अपनी स्थिति पर अधिकारपूर्ण गर्व है। यह सच्चाई है कि पार्टी के प्रदेश प्रधान ओम प्रकाश धनखड़ का संगठन पर पूरी तरह से कब्जा है लेकिन इन्ही चर्चाओं में जहाँ पहले मुख्यमंत्री बदले जाने की चर्चाएं थी तो अब प्रदेश अध्यक्ष धनखड़़ को बदले जाने की भी चर्चाएं चल निकली हैं। क्योंकि इन चर्चाओं के अनुसार धनखड़ को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा पद देनेे के बारे में पार्टी आलाकमान गहनता से विचार कर रही है। कहा यह भी जा रहा है कि धनखड़़ को बदलने में मुख्यमंत्री भी रूचि दिखा रहे हैं। लेकिन पार्टी जाट को पद से हटा कर किसी जाट नेता को ही पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती है, क्योकि भाजपा जाट मतदाताओं को नाराज नहीं करना चाहती है। इस लिए चर्चाओं में पूर्व पार्टी अध्यक्ष सुभाष बराल का नाम आगे चल रहा है। सुभाष बराला को मुख्यमंत्री की पसंदीदा भी बताया जा रहा है क्योकि जब वे प्रदेश अध्यक्ष थे तो उनकी मुख्यमंत्री के साथ जबरदस्त टुयूनिंग थी।