भारतीय भाषाओं की स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता के सूत्र को उजागर करने की जरूरत
- गुरुग्राम, 30 जुलाई : पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि भारत की सभी भाषाएं समाज को एकता के सूत्र में जोड़ने का कार्य करती है। उन्होंने कहा कि आज भारतीय भाषाओं की स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता के सूत्र को उजागर कर दुनिया में उसके प्रसार प्रचार की जरूरत है। कोविंद रविवार को गुरुग्राम में बनने वाले भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र के शिलान्यास संस्कृति महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने संस्कृति की संवाहक भारतीय भाषाएं विषय पर बोलते हुए कहा कि भारत केवल प्राचीन सभ्यता के लिए ही नहीं अपितु अपनी संस्कृति और भाषाई संस्कृति के लिए भी जाना जाता है। भारत की विभिन्न भाषाओं का अपना गौरवशाली इतिहास है, उसके पास अपना समृद्ध इतिहास है, अपनी सांस्कृतिक एकता को अभिव्यक्त करने का सामर्थ्य भी है। कोविंद ने कहा कि कभी-कभी भारत की भाषाओं को एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने का प्रयास किया जाता है। ऐसे में बौद्धिक समाज का यह दायित्व बनता है कि वो भाषाओं के बीच पारस्परिक संवाद को प्रोत्साहित करें और विवाद पैदा करने से बचें। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि भाषाएं सही में मानव समाज को जोड़ने का साधन बनती हैं तोड़ने का नहीं। इस केंद्र को भी इसी दिशा में प्रयास करना चाहिए। हमारे स्वाधीनता संग्राम के दौरान स्वदेशी और स्वभाषा पर भी बहुत बल दिया गया था। भारतीय भाषाओं के बीच कोई आपसी द्वेष नहीं हो सकता क्योंकि उनके भाव एक ही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारतीय भाषाओं के बीच दूरी को मिटाने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। वे भारतीय भाषाओं के बीच एकता को बढ़ाने के प्रबल पक्षधर थे। वे हमेशा कहते थे कि सभी देशवासियों को अपनी मातृ भाषा के साथ-साथ देश की एक और भाषा सीखनी चाहिए।
- राजभाषा हिंदी के साथ-साथ अपनी प्रबुद्ध भारतीय भाषाओं को हमने संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया है। बहुत सी अन्य भाषाओं को राज्य सरकारों ने ऑफिशियल लैंग्वेज का दर्जा भी दिया है। इनके अलावा भी भारत में ऐसी अनेक भाषाएं हैं जो सरकार और समाज के सहयोग की अपेक्षा रखती हैं। जनजातीय भाषाओं की संविधान की 8वीं अनुसूचि में अनुपस्थिति हमें हमेशा खलती थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान बोड़ो और संथाली भाषा को 8वीं अनुसूचि में शामिल किया गया।
- भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन का विषय भारतीय समाज के लिए कितना सामरिक दृष्टि से ज्वलंत है इसे समझने के लिए गांधी जी के शब्दों पर हमें पुनः ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा था कि हमने अपनी मातृ भाषाओं के मुकाबले अंग्रेजी से ज्यादा मोहब्बत रखने का नतीजा यह हुआ कि पढ़े लिखे और राजनीतिक दृष्टि से जागृत ऊंचे तबके के लोगों के साथ आप लोगों का रिश्ता बिल्कुल टूट गया और दोनों के बीच एक गहरी खाई बन गई। यही वजह है कि हिन्दुस्तान की भाषाएं गरीब बन गई और उन्हें पूरा पोषण नहीं मिला। सही मायने में गांधी जी ने धरातल की वास्तविकता को उजागर किया था। हम जिन भारतीय भाषाओं के विषय में आज विचार कर रहे हैं वे सभी भारत की सनातन संस्कृति की सहायिका हैं।