- गुरुग्राम,13 अगस्त : राजीव नगर स्थित अखंड परम धाम गुफा वाले शिव मंदिर में आयोजित शिव महापुराण के पांचवें दिन महामंडलेश्वर साध्वी आत्म चेतना गिरी महाराज ने बताया कि जिस प्रकार छोटे बच्चों को शुरुआत में पढ़ने के लिए चित्रों का सहारा लेना पड़ता है और इन चित्रों को बताने के लिए एक गुरु की आवश्यकता होती है इसी प्रकार साधारण प्राणी को भी ब्रह्म ज्ञान को जानने के लिए अपने जीवन में किसी सद्गुरु की शरण में जाना चाहिए क्योंकि ग्रंथों को पढ़कर हमें ज्ञान तुम्हें सकता है परंतु हमारे हृदय में जागरूक प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल सकते अतः अपने जीवन में प्रत्येक मनुष्य को किसी न किसी गुरु की शरण में अवश्य जाना चाहिए
- महामंडलेश्वर गुरु के अर्थ की व्याख्या करते हुए कहा कि जो व्यक्ति आपको अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए वह गुरु होता है। गुरु का अर्थ अंधकार का नाश करने वाला। अध्यात्मशास्त्र अथवा धार्मिक विषयों पर प्रवचन देने वाले व्यक्तियों में और गुरु में बहुत अंतर होता है। गुरु आत्म विकास और परमात्मा की बात करता है। प्रत्येक गुरु संत होते ही हैं; परंतु प्रत्येक संत का गुरु होना आवश्यक नहीं है। केवल कुछ संतों में ही गुरु बनने की पात्रता होती है। गुरु का अर्थ ब्रह्म ज्ञान का मार्गदर्शक। ब्रह्म को जानता है वह गुरू ब्राह्मण है
- उन्होंने गुरु और आचार्य में अंतर बताते हुए कहा कि आचार्य उसे कहते हैं जिसे वेदों और शास्त्रों का ज्ञान हो और जो गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा देने का कार्य करता हो। आचार्य का अर्थ यह कि जो आचार, नियमों और सिद्धातों आदि का अच्छा ज्ञाता हो और दूसरों को उसकी शिक्षा देता हो। वह जो कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञाता हो और यज्ञों आदि में मुख्य पुरोहित का काम करता हो उसे भी आचार्य कहा जाता साध्वी जी ने कहा आज ब्राह्मण को मात्र मंदिर में घंटी बजाना वाला पंडित ही माना जाता है जबकि ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है। जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है। जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण भी है। जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण, ज्योतिषी है। पंडित तो किसी विषय के विशेषज्ञ को कहते हैं और जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण कथावाचक है।
- कथा के अंत में पंडित लोकेंद्र शास्त्री व उनके साथियों द्वारा शिव महापुराण एवं व्यासपीठ पर विराजित महामंडलेश्वर साध्वी आत्म चेतना गिरी जी महाराज की पूजा अर्चना की गई और माल्यार्पण द्वारा उनका स्वागत किया गया।