
पीएम मोदी का चीन दौरा ट्रंप बोले “ये दोस्ती अब खतरे में है!”
दिल्ली डेस्क: अमेरिका की मनमानी टैरिफ नीति अब उसके खिलाफ वैश्विक मोर्चा खड़ा कर रही है। भारत, चीन और रूस ने संकेत दिए हैं कि वे मिलकर इस आर्थिक आक्रामकता का जवाब देंगे विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका का यह कदम अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियमों की धज्जियां उड़ाने जैसा है। वॉशिंगटन अपनी आर्थिक दबाव” रणनीति से उभरती अर्थव्यवस्थाओं को झुकाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह उल्टा असर डाल सकता है।
सूत्र बताते हैं कि तीनों देश आपसी व्यापारिक समझौतों को तेज़ी से आगे बढ़ाकर अमेरिका को आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग करने की योजना बना रहे हैं। अगर यह रणनीति सफल हुई तो अमेरिका के लिए वैश्विक बाजार में अपनी पकड़ बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा। और इस बात को लेकर अब अमेरिका बौखलाया हुआ है अमेरिका को क बात और खल रही है की आखिर भारत की और रूस की दोस्ती इतनी गहरी कैसे दरअसल भारत की तेजी से बढ़ती ताकत ने अमेरिका की नींदें उड़ा दी हैं।
एक तरफ भारत आर्थिक मोर्चे पर दुनिया की सबसे तेज़ी से उभरती शक्ति बन चुका है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका को यह रफ्तार बर्दाश्त नहीं हो रही। यही वजह है कि वह हर मोर्चे पर भारत को रोकने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहा है। हाल ही में अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर भारी टैरिफ लगा दिए, जिससे साफ संकेत मिलता है कि वॉशिंगटन अब खुलकर व्यापार युद्ध की राह पर है। इससे पहले भी अमेरिका भारत की IT और फार्मा इंडस्ट्री को निशाना बना चुका है, क्योंकि ये सेक्टर अमेरिकी कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती दे रहे हैं। तकनीकी और रक्षा क्षेत्र में भारत की तेज़ प्रगति भी अमेरिका के गले नहीं उतर रही। अंतरिक्ष मिशन, स्वदेशी हथियार निर्माण और परमाणु क्षमता में लगातार हो रही वृद्धि से अमेरिका को डर है कि आने वाले वर्षों में भारत एशिया ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी बन सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत की सक्रियता और स्वतंत्र विदेश नीति वॉशिंगटन के लिए परेशानी का कारण है। BRICS, G20 और संयुक्त राष्ट्र में भारत की मजबूत उपस्थिति अमेरिका की “वन-साइडेड वर्ल्ड ऑर्डर” की सोच को सीधी चुनौती देती है। स्पष्ट है कि अमेरिका की कथित दोस्ती के पीछे ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा का खेल छुपा है। भारत जितना आगे बढ़ेगा, भारत रूस और अमेरिका दोनों से रिश्ते रखता है, जिससे अमेरिका को लगता है कि भारत पूरी तरह उसके पक्ष में नहीं है। भारत रूस और अमेरिका दोनों से रिश्ते रखता है, जिससे अमेरिका को लगता है कि भारत पूरी तरह उसके पक्ष में नहीं है।
क्वाड जैसे समूहों में साझेदारी होने के बावजूद भारत कई मुद्दों पर “स्वतंत्र नीति” अपनाता है, जो अमेरिका को असहज करता है।
दूसरा कारण ये भी है की भारत ने अंतरिक्ष, रक्षा और परमाणु तकनीक में तेज़ी से विकास किया है। अमेरिका को डर है कि इससे उसका “टेक्नोलॉजी लीड” घट सकता है। अब पीएम मोदी चीन के दौरे पर जाने वाले है और ये बात जबसे वाशिंगटन डीसी में गया है सियासी हलचल है और अमेरिका चाहता है की पीएम वहां न जाएं अब सवाल ये है – क्या मोदी का यह कूटनीतिक दांव भारत को रणनीतिक लाभ दिलाएगा या अमेरिका के साथ दशकों पुरानी दोस्ती रूपी दुश्मनी में दरार डाल देगा?