‘छत्तीसगढ़ में देर, लेकिन यूपी में जीत’, कैसा था बीएसपी संस्थापक कांशीराम का राजनीतिक सफर?
नई दिल्ली 21 मार्च 2024। बसपा संस्थापक कांशीराम ने अपना पहला संसदीय चुनाव 1984 में छत्तीसगढ़ (तब मप्र) की जांजगीर-चांपा सीट से लड़ा। यहां तो उनकी हार हुई, लेकिन बाद में राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत स्तंभ बनकर उभरे और उत्तर प्रदेश में बसपा मजबूत होती गई।
उत्तर प्रदेश में बसपा का संगठनात्मक ढांचा मजबूती से बढ़ने लगा। उप्र व देश की राजनीति में बसपा की महत्वपूर्ण उपस्थिति नजर आने लगी।
निर्दलीय लड़ा था चुनाव
बसपा की स्थापना 14 अप्रैल 1984 को हुई थी, लेकिन पार्टी को चुनाव आयोग द्वारा मान्यता नहीं दी गई थी, इसलिए कांशीराम ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। इस चुनाव में कांशीराम को मात्र 32,135 वोट मिले। प्रचार के लिए साइकिल रैली व नुक्कड़ सभाओं के साथ बसपा की वर्तमान अध्यक्ष मायावती भी उनके साथ रहती थीं। चुनाव के बाद प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला।
कई नारे रहे चर्चित
अविभाजित मध्य प्रदेश के इस बड़े हिस्से में बहुजन आंदोलन की शुरुआत हुई और धीरे-धीरे जड़ें मजबूत होने लगीं। उस दौर में कुछ चर्चित नारे भी सामने आए। ‘वोट हमारा, राज तुम्हारा नहीं चलेगा’ और ‘अब न पचासी धोखा खाओ, देश में अपना शासन लाओ’, ‘एक वोट और एक नोट’ जैसे नारे खूब चले।
घटते गए बसपा के सांसद
बीएसपी की बात करें तो 13वीं लोकसभा में पार्टी के 14, 14वीं में 17 और 15वीं लोकसभा में 21 सदस्य थे, लेकिन अब इसका जनाधार कम हो गया है और 16वीं लोकसभा में इसका कोई भी उम्मीदवार जीत नहीं सका| 17वीं लोकसभा में उसके दस उम्मीदवार जीतकर संसद पहुंचे। हालांकि, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभाओं में इसके कुछ सदस्य हैं। वैसे पार्टी का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश है, जहां की विधानसभा में इस समय उसका केवल एक विधायक है।