कब्जा की गई बेशकीमती सरकारी जमीन
गुरुग्राम: मानव आवाज संस्था के संयोजक अभय जैन एडवोकेट ने आरोप लगाया है कि गुरुग्राम में प्रशासन अवैध कब्जों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने में नाकाम साबित हो रहा है, खासकर जब बात बेशकीमती सरकारी जमीन की होती है। उनका कहना है कि प्रशासन गरीबों और मजदूरों की रेहडिय़ों को तोड़ने के लिए सक्रिय है, लेकिन प्रभावशाली लोगों द्वारा सरकारी जमीन पर किए गए अवैध कब्जों को हटाने में वह पूरी तरह से विफल है।
अभय जैन ने कहा कि कानून के तहत रेहडिय़ों को तोड़ने की अनुमति नहीं है, लेकिन फिर भी प्रशासन ने इस कार्यवाई को अंजाम दिया है। इसके विपरीत, होटल, अस्पताल और अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठान जिन्होंने सरकारी जमीन पर कब्जा किया है, उन पर प्रशासन की नजरें नहीं जातीं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि सिविल लाइन जैसे पॉश इलाके में एक होटल ने अवैध रूप से सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है, जबकि ओल्ड रेलवे रोड पर एक अस्पताल ने सड़क पर अवैध रूप से पार्किंग बना रखी है। हालांकि, इन अवैध कब्जों पर विभागीय अधिकारियों की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे:
अभय जैन ने हरियाणा सरकार के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि गुरुग्राम में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण की 663.05 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे हैं, जिनमें से 466.29 एकड़ जमीन के मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं। बावजूद इसके, प्रशासन ने अब तक 196.76 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जे हटवाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इसके अलावा, गुरुग्राम नगर निगम के विभिन्न क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे हुए हैं। उदाहरण स्वरूप, जोन-1 में 8.09 एकड़, जोन-2 में 25.10 एकड़, जोन-3 में 57.20 एकड़ और जोन-4 में 66.77 एकड़ सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे किए गए हैं।
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल:
अभय जैन ने इस मुद्दे पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर प्रशासन वास्तव में अवैध कब्जों के खिलाफ कार्रवाई करना चाहता है, तो उसे प्रभावशाली लोगों द्वारा किए गए कब्जों पर भी समान रूप से कार्यवाही करनी चाहिए। उन्होंने यह भी सवाल किया कि क्यों डीटीपी अधिकारी आर.एस. बाठ और अन्य नोडल अधिकारी उन कब्जों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जबकि वे सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे को बर्दाश्त नहीं करने का दावा करते हैं।
भ्रष्टाचार का आरोप:
अभय जैन ने यह आरोप भी लगाया कि गुरुग्राम प्रशासन की अवैध कब्जों के खिलाफ कार्रवाई केवल गरीबों और मजदूरों तक ही सीमित है, जबकि प्रभावशाली व्यक्तियों के कब्जों को प्रशासन नजरअंदाज कर रहा है। उन्होंने यह भी सवाल किया कि क्या यह कार्रवाई भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए की जा रही है या फिर यह प्रशासन की कार्यप्रणाली में एक खामी को उजागर करती है।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर प्रशासन ने अवैध कब्जों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की, तो यह इस बात का संकेत होगा कि प्रशासन की नीयत सही नहीं है और बड़े भ्रष्टाचार को ढंकने के प्रयास हो रहे हैं।
