कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों के अनुसार ही दक्षिणी हरियाणा के रेवाडी, महेन्द्रगढ़, नूंह, गुरूग्राम, फरीदाबाद, पलवल जिले के लिए रबी फसल बिजाई के लिए 921455 हेक्टयर जमीन का लक्ष्य है जिसके लिए लगभग 91200 मीट्रिक टन डीएपी खाद जरूरत है
लंबे-चौडे जुमले उछालर किसानों को ठगने की बजाय वे दक्षिणी हरियाणा के किसानों को पर्याप्त मात्रा में डीएएपी खाद की व्यवस्था करे।
लगभग 91200 मीट्रिक टन डीएपी खाद जरूरत है
रेवाडी 24 अक्टूबर , स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से मांग की कि लंबे-चौडे जुमले उछालर किसानों को ठगने की बजाय वे दक्षिणी हरियाणा के किसानों को रबी फसल की बिजाई के लिए पर्याप्त मात्रा में डीएएपी खाद की व्यवस्था करे। विद्रोही ने कहा कि दक्षिणी हरियाणा में रबी की सरसों फसल की बिजाई लगभग पूरी हो चुकी है और किसान अब गेंहू बिजाई की पूरी तैयारी कर चुका है, लेकिन पूरे क्षेत्र में बिजाई के लिए डीएपी खाद के लिए किसान परेशान है। किसानों ने डीएपी खाद का जुगाड़ करके किसी तरह सरसों बिजाई तो कर ली, लेकिन उसे गेंहू की बिजाई के लिए फिर से डीएपी खाद के लिए जूझना पड़ रहा है। बिजाई के लिए मजबूर होकर किसानों को 1350 रूपये में मिलने वाला डीएपी खाद का कट्टा ब्लैक में 1650 से 1800 रूपये में खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। हरियाणा भाजपा सरकार, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी व कृषि मंत्री हरियाणा में पर्याप्त मात्रा में खाद होने का जुमला तो उछालते है, पर खाद कहां है यह कोई नही जानता क्योंकि किसान को तो डीएपी मिल नही रहा।
विद्रोही ने कहा कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों के अनुसार ही दक्षिणी हरियाणा के रेवाडी, महेन्द्रगढ़, नूंह, गुरूग्राम, फरीदाबाद, पलवल जिले के लिए रबी फसल बिजाई के लिए 921455 हेक्टयर जमीन का लक्ष्य है जिसके लिए लगभग 91200 मीट्रिक टन डीएपी खाद जरूरत है, लेकिन अभी तक भाजपा सरकार ने लगभग 35 हजार मीट्रिक टन डीएपी खाद ही उपलब्ध करवाया है। इस तरह मांग व आपूर्ति के बीच लगभग 56000 मीट्रिक टन का अंतर है। ऐसी स्थिति में डीएपी खाद की मारामारी स्वभाविक है जिससे 1350 रूपये में मिलने वाला डीएपी का कट्टा 1650 से 1800 रूपये में खाद व्यापारी बेचकर किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर उसे लूट रहे है। विद्रोही ने कहा कि जब डीएपी खाद की मांग व आपूर्ति के बीच इतना बडा अंतर हो तो स्वभाविक है कि किसान के पास सरसों, गेंहू बिजाई के लिए ब्लैक में खाद खरीदने के अलावा अन्य विकल्प क्या है? किसानों ने सरसों की बिजाई ब्लैक में खाद खरीदकर की और अब यही स्थिति गेंहू फसल बिजाई के समय है। किसान को एक कट्टा खाद के लिए 300 से 500 रूपये ज्यादा खर्च करना पडा रहा है जिसके चलते घाटे की खेती में पिसते किसान का लागत खर्च और बढ़ गया और उसका कृषि घाटा और बढेगा जिससे कर्ज बोझ से दबा किसान और कर्ज बोझ से दबेगा। ऐसी स्थिति में विद्रोही ने हरियाणा के मुख्यमंत्री से मांग की कि वे दमगज्जे मारकर किसानों को ठगने की बजाय दक्षिणी हरियाणा में मांग अनुसार पर्याप्त मात्रा में डीएपी खाद की व्यवस्था करे।

