
PATNA 14 OCTOBER 2025 / राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सीट बंटवारे के बाद सब कुछ सामान्य नहीं है। बाहर से भले ही गठबंधन की एकजुटता दिखाई जा रही हो, लेकिन भीतर असंतोष की लहर तेज होती जा रही है। पहले जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी सामने आई, और अब खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार असंतुष्ट बताए जा रहे हैं।दरअसल, जदयू को सीट बंटवारे में भाजपा के बराबर 101 सीटें दी गई है, जबकि नीतीश कुमार अपनी पार्टी के लिए 103 से अधिक सीटें चाहते थे। सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुछ ऐसी 8-9 सीटों के बंटवारे को लेकर सबसे ज्यादा नाराज हैं, जिन्हें लोजपा (रामविलास) के खाते में डाल दिया गया। इनमें कदवा और सोनबरसा जैसी सीटें शामिल हैं, जो लंबे समय से जदयू की मजबूत सीटें मानी जाती रही हैं।कदवा सीट से जदयू के पूर्व सांसद दुलालचंद गोस्वामी मैदान में उतरने की तैयारी में थे, लेकिन यह सीट अचानक चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (राम) को दे दी गई।
इसी तरह सोनबरसा सीट से वर्तमान मंत्री रत्नेश सदा विधायक हैं, लेकिन एनडीए के आधिकारिक बंटवारे में यह सीट भी लोजपा (राम) के हिस्से में चली गई। इससे नाराज नीतीश कुमार ने सोमवार को बड़ा कदम उठाते हुए रत्नेश सदा को फिर से जदयू का सिंबल दे दिया। यह फैसला राजनीतिक गलियारों में एनडीए को चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।सूत्र बताते हैं कि सोमवार देर रात जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा के आवास पर पार्टी की अहम बैठक हुई, जिसमें नीतीश खेमे ने भाजपा से कुछ सीटों पर पुनर्विचार की मांग की है। इस पूरे विवाद को लेकर आज दोपहर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने सरकारी आवास पर शीर्ष नेतृत्व के साथ बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि उन्होंने पार्टी के एक वरिष्ठ नेता से नाराजगी भी जताई है, जिन पर सीट बंटवारे की बातचीत की जिम्मेदारी थी।
इधर, जदयू ने एनडीए की औपचारिक उम्मीदवार सूची आने से पहले ही अपने कई प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह (सिंबल) दे दिया है। इनमें भोरे से शिक्षा मंत्री सुनील कुमार, सोनबरसा से मंत्री रत्नेश सदा, राजपुर से पूर्व मंत्री संतोष निराला, जमालपुर से पूर्व मंत्री शैलेश कुमार, वैशाली से सिद्धार्थ पटेल, मोकामा से अनंत सिंह और झाझा से दामोदर रावत शामिल हैं। रत्नेश सदा और अनंत सिंह आज नामांकन दाखिल करने भी जा रहे हैं।राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नीतीश कुमार का यह रुख साफ संकेत देता है कि जदयू अब अपने अस्तित्व और सम्मान से समझौता नहीं करना चाहता। वे यह दिखाना चाहते हैं कि भले ही गठबंधन में हों, लेकिन पार्टी की पहचान और अधिकार से पीछे नहीं हटेंगे। बिहार की राजनीति में इस कदम को “नीतीश की रणनीतिक नाराजगी” कहा जा रहा है एक ऐसा दबाव जो आने वाले दिनों में एनडीए के भीतर समीकरणों को और बदल सकता है।