
नेशनल, 12 August 2025: मेदांता – द मेडिसिटी, जो देश का जाना-माना मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल है और लगातार 6 साल से न्यूज़वीक द्वारा बेस्ट प्राइवेट हॉस्पिटल चुना जा रहा है, ने 83 साल के एक बुज़ुर्ग का सफल इलाज किया, जिनके ट्रेकिआ में एक दुर्लभ प्लेमॉर्फिक एडेनोमा था। ये सैलिवरी ग्लैंड टाइप का नॉन-कैंसरस ट्यूमर है, जो ट्रेकिआ में बहुत ही कम पाया जाता है, खासकर इस उम्र में, और दुनियाभर में ऐसे केस सिर्फ़ 0.01–0.4% होते हैं।
ये ट्यूमर सांस की नली का आधे से ज्यादा हिस्सा ब्लॉक कर रहा था, जिससे हवा का आना-जाना मुश्किल हो गया था। इसे एडवांस ब्रॉन्कोस्कोपी तकनीक जैसे स्नेरिंग और क्रायो-एक्सट्रैक्शन से हटाया गया। कई अस्पतालों ने उम्र, दिल की बीमारी और खून पतला करने वाली दवाओं की वजह से इसे “ऑपरेशन न हो सकने वाला केस” मान लिया था। लेकिन मेदांता में डॉ. आशीष कुमार प्रकाश, एसोसिएट डायरेक्टर, रेस्पिरेटरी और स्लीप मेडिसिन, मेदांता गुरुग्राम की टीम ने मिनिमली इनवेसिव ब्रॉन्कोस्कोपी से बिना चेस्ट खोले और बिना जनरल एनेस्थीसिया, ट्यूमर को निकालकर एयरवे को पूरी तरह खोल दिया।
मरीज को एक महीने से लगातार खांसी, सांस लेने में तकलीफ और सीटी जैसी आवाज़ स्ट्राइडर की शिकायत थी। भर्ती होने पर एचआरसीटी और ब्रॉन्कोस्कोपी की गई, जिसमें ट्रेकिआ में खून की नसों से भरपूर, डंठल वाली गांठ पेडंक्युलेटेड मास मिली। मरीज धूम्रपान नहीं करते थे, लेकिन उन्हें कई गंभीर दिल की बीमारियाँ थीं — रूमैटिक हार्ट डिज़ीज़, सीवियर माइट्रल रिगर्जिटेशन और एट्रियल फिब्रिलेशन। वो खून पतला करने की दवा ले रहे थे, जिसकी वजह से जनरल एनेस्थीसिया और ओपन सर्जरी का रिस्क ज्यादा था। ऐसे में डॉक्टरों ने फ्लेक्सिबल फाइबर-ऑप्टिक ब्रॉन्कोस्कोपी से मिनिमली इनवेसिव ट्यूमर हटाने का फैसला लिया, जिसमें स्नेरिंग और क्रायो-एक्सट्रैक्शन से गांठ को सुरक्षित तरीके से निकाला गया।
इलाज के बारे में बताते हुए डॉ. आशीष कुमार प्रकाश, एसोसिएट डायरेक्टर, रेस्पिरेटरी और स्लीप मेडिसिन, मेदांता गुरुग्राम ने कहा, “ये एक बेहद दुर्लभ और हाई-रिस्क केस था। मरीज की सांस की नली आधे से ज्यादा बंद थी और उम्र व दिल की हालत की वजह से वो नॉर्मल सर्जरी या जनरल एनेस्थीसिया के लिए फिट नहीं थे। हमने एक खास कैमरा, फाइबर-ऑप्टिक ब्रॉन्कोस्कोप का इस्तेमाल कर, सांस की नली के अंदर से ही ट्यूमर निकाला, बिना चेस्ट खोले। पहले हमने ट्यूमर को फंदा (Snare – स्नेर) डालकर पकड़ा, फिर क्रायोप्रोब से जमाया और सावधानी से बाहर निकाला। मरीज के दिल पर कम दबाव पड़े और सुरक्षा बनी रहे, इसके लिए पूरी प्रक्रिया आईसीयू मॉनिटरिंग में की गई, जिसमें अस्थायी रूप से सांस की नली में ट्यूब लगाई गई, ताकि बार-बार ब्रॉन्कोस्कोप डालने की जरूरत न पड़े और नली को कम चोट पहुंचे। सबसे बड़ा खतरा खून बहने का था, क्योंकि वो खून पतला करने की दवा ले रहे थे, लेकिन सही प्लानिंग और टीमवर्क से ये बिना किसी जटिलता के पूरा हुआ। जांच में पता चला कि ये प्लेमॉर्फिक एडेनोमा था — जो ट्रेकिआ में बेहद दुर्लभ और खासकर इस उम्र में लगभग ना के बराबर देखा जाता है। हैरानी की बात है कि मरीज कुछ घंटों में ही आराम से सांस लेने लगे और अगले दिन डिस्चार्ज हो गए। ये केस दिखाता है कि मिनिमली इनवेसिव तकनीक कितने कठिन मामलों में भी नई उम्मीद दे सकती है।”
उन्होंने आगे कहा, “ये केस बताता है कि ब्रॉन्कोस्कोपी में तकनीकी प्रगति की मदद से हम बेहद नाज़ुक मरीजों का भी इलाज बड़े ऑपरेशन के बिना कर सकते हैं। सही योजना, टीमवर्क और मरीज-केंद्रित देखभाल के साथ हम उनका एयरवे और जीवन की गुणवत्ता सुरक्षित तरीके से बहाल कर पाए।”
मरीज ने भावुक होकर कहा, “ज्यादातर डॉक्टरों ने कहा कि मैं बहुत बूढ़ा हूँ और मेरा दिल बहुत कमजोर है, इसलिए कुछ नहीं हो सकता। लेकिन यहाँ डॉक्टरों ने सुना और मुझे मौका दिया। मुझे सुलाया भी नहीं गया, फिर भी ट्रीटमेंट हो गया। आज मैं फिर से खुलकर सांस ले पा रहा हूँ और लगता है कि ज़िंदगी वापस मिल गई।”
ये केस बुज़ुर्ग मरीजों में दुर्लभ सांस की नली के ट्यूमर के इलाज का एक नया मानक पेश करता है — जहाँ सुरक्षा, सफलता और नवाचार का संतुलन बनाकर उन मरीजों को उम्मीद दी जा सकती है जिन्हें पहले इलाज-लायक नहीं माना जाता था।