NCPCR ने कोर्ट के समक्ष यह बात भी रखी कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को वही अवसर मिलने चाहिए जो अन्य सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलते हैं। आयोग का दावा है कि कई मदरसे इन बच्चों को केवल धार्मिक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं और विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन जैसे विषयों को महत्व नहीं देते, जिससे उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है। आयोग ने सुझाव दिया कि सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और समग्र शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वे राष्ट्र की प्रगति में पूर्ण रूप से योगदान दे सकें।
दूसरी ओर, मदरसा एक्ट के समर्थन में कुछ पक्षों ने यह दलील दी है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों के तहत आता है। उनका तर्क है कि भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, और मदरसे इस धार्मिक स्वतंत्रता के तहत शिक्षा प्रदान करते हैं। मदरसा समर्थक यह मानते हैं कि बच्चों को न सिर्फ धार्मिक ज्ञान, बल्कि नैतिक शिक्षा भी दी जाती है, जो उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करती है। उनका मानना है कि मदरसे बच्चों को आध्यात्मिक और नैतिक रूप से मजबूत बनाते हैं और इस शिक्षा का समाज में महत्वपूर्ण योगदान होता है।
यह मामला संविधान के अनुच्छेद 25 और 30 के तहत धार्मिक और अल्पसंख्यक शिक्षा के अधिकारों से भी जुड़ा है। अनुच्छेद 25 हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें प्रबंधित करने का अधिकार देता है। मदरसा एक्ट के समर्थक इसी आधार पर इसे वैध मानते हैं और मदरसों में धार्मिक शिक्षा को संरक्षण देने की मांग करते हैं।
हालांकि, NCPCR का यह भी तर्क है कि धार्मिक शिक्षा का सम्मान करते हुए भी बच्चों के समग्र विकास के लिए आधुनिक शिक्षा का होना अत्यावश्यक है। आयोग ने यह अपील की है कि कोर्ट यह सुनिश्चित करे कि मदरसे भी आधुनिक शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनें और बच्चों को समग्र शिक्षा प्रदान करें, ताकि वे देश के विकास में पूरी तरह से सहभागी बन सकें।
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर व्यापक रुचि है, क्योंकि यह निर्णय न केवल मदरसा शिक्षा को प्रभावित करेगा, बल्कि इससे भारत में धार्मिक शिक्षा और आधुनिक शिक्षा के बीच संतुलन को लेकर भी महत्वपूर्ण दिशानिर्देश सामने आ सकते हैं। अदालत में आज इस मामले की सुनवाई के बाद आने वाले दिनों में इस पर कोई अहम फैसला सुनाया जा सकता है, जो देश के शिक्षा तंत्र और अल्पसंख्यक समुदायों की शैक्षणिक स्वतंत्रता पर व्यापक प्रभाव डालेगा।