
अमेरिका का भारत पर 50% टैरिफ, पीएम मोदी का सख्त संदेश किसानों और मछुआरों के हित से समझौता नहीं”
नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक तनाव एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। अमेरिका ने भारत से आयातित कुछ उत्पादों पर 50% तक का टैरिफ लगाने का फैसला किया है। अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि भारत के रूसी तेल की खरीद से उनकी “रूस को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश” कमजोर हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर संसद और जनता के सामने अपना रुख साफ करते हुए कहा—
“भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरे भाइयों-बहनों के हितों के साथ कभी समझौता नहीं करेगा। मुझे पता है कि इस फैसले के कारण व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार हूँ अमेरिका लंबे समय से चाहता है कि भारत रूस से कच्चे तेल की खरीद कम करे। वॉशिंगटन का मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत द्वारा रियायती दर पर तेल खरीदने से रूस की अर्थव्यवस्था को सहारा मिल रहा है। हालांकि, भारत का तर्क है कि उसकी ऊर्जा सुरक्षा और घरेलू बाज़ार के लिए यह खरीद ज़रूरी है। आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि अमेरिका का यह कदम दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों पर असर डाल सकता है। भारत-अमेरिका के बीच सालाना व्यापार 200 अरब डॉलर से अधिक का है, और ऐसे में ऊंचा टैरिफ कई क्षेत्रों, खासकर कृषि और मैन्युफैक्चरिंग, के लिए चुनौती बन सकता है। भारत-अमेरिका संबंध एक बार फिर तनाव में हैं। अमेरिका ने भारत से आयातित कुछ उत्पादों पर 50% तक का टैरिफ लगा दिया है। अमेरिकी प्रशासन का आरोप है कि भारत रूस से लगातार कच्चा तेल खरीदकर रूस को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश को कमजोर कर रहा है मोदी का यह बयान सख्त जरूर है, लेकिन सवाल उठ रहा है कि 50% टैरिफ के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगे हुए भारतीय उत्पादों का असर सीधा किसानों, मछुआरों और व्यापारियों पर ही पड़ेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर अमेरिकी बाजार में भारतीय निर्यात महंगा होगा, तो इसका सीधा नुकसान भारत के छोटे उत्पादकों और निर्यातकों को होगा, जिनके लिए पहले से ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा कठिन है। अमेरिका का गुस्सा रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत द्वारा रियायती दर पर तेल खरीदने को लेकर है। वॉशिंगटन का मानना है कि इससे रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है। ऐसे में यह टैरिफ सिर्फ आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि भारत पर राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश भी माना जा रहा है।
विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार की विदेश नीति में “दोस्ताना और संतुलन” की जगह “जिद और टकराव” बढ़ गया है, जिसका खामियाजा देश की अर्थव्यवस्था भुगतेगी। सवाल यह भी है कि अगर कीमत चुकाने का वक्त आया, तो क्या यह बोझ सिर्फ आम जनता और किसानों पर डाला जाएगा?
क्या हो सकता है असर
भारतीय निर्यात पर भारी मार
कृषि और मत्स्य उद्योग को बड़ा नुकसान
द्विपक्षीय व्यापार में गिरावट
भारत की विदेश नीति पर बढ़ता दबाव