जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के नेता उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए एक अप्रत्याशित बयान दिया है, जिसने राजनीतिक हलकों में काफी सुर्खियां बटोरी हैं। आम तौर पर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की नीतियों के आलोचक माने जाने वाले उमर अब्दुल्ला ने एक खास मौके पर पीएम मोदी की प्रशंसा की, जिससे इस बयान पर व्यापक चर्चा शुरू हो गई है।
उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ किसी विशिष्ट नीति या विकास कार्य को लेकर की है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में चल रही केंद्र सरकार की कुछ पहलों की सराहना करते हुए कहा कि पीएम मोदी ने कुछ क्षेत्रों में महत्वपूर्ण और सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास किया है। हालांकि, उमर ने साफ किया कि उनकी यह तारीफ सिर्फ निष्पक्षता और ईमानदारी पर आधारित है, और इसका यह मतलब नहीं है कि वे केंद्र सरकार की सभी नीतियों से सहमत हैं।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब जम्मू-कश्मीर की राजनीति में कई बड़े बदलाव हो रहे हैं। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद से घाटी में राजनीतिक और सामाजिक बदलाव तेजी से हो रहे हैं। ऐसे में उमर अब्दुल्ला का यह बयान एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है।
उमर अब्दुल्ला के बयान के बाद राजनीतिक विश्लेषक और उनके समर्थक इसे कई दृष्टिकोणों से देख रहे हैं। कुछ का मानना है कि यह बयान उनके और केंद्र सरकार के बीच किसी तरह के संवाद या सकारात्मक माहौल का संकेत हो सकता है, जबकि अन्य इसे महज एक निष्पक्ष प्रशंसा मान रहे हैं।
गौरतलब है कि उमर अब्दुल्ला, जो कई बार केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के आलोचक रहे हैं, ने हाल ही में कई मुद्दों पर केंद्र की नीतियों की आलोचना की थी, खासकर जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर। लेकिन इस बार उनका यह सकारात्मक बयान राजनीतिक गणनाओं और समीकरणों में बदलाव की संभावना को भी जन्म देता है।
हालांकि, उमर अब्दुल्ला ने यह भी स्पष्ट किया कि वे जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को लेकर अपनी पार्टी की मूल विचारधारा से समझौता नहीं करेंगे। उनके अनुसार, केंद्र सरकार की कुछ नीतियां निश्चित रूप से सराहनीय हो सकती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे सभी मुद्दों पर केंद्र के साथ हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस और भाजपा के बीच का यह समीकरण हमेशा से जटिल रहा है, और उमर अब्दुल्ला के इस बयान से यह संबंध और अधिक जटिल हो सकता है। जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उनकी यह टिप्पणी आगे आने वाले चुनावों और राज्य की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में अहम साबित हो सकती है।
अंततः, उमर अब्दुल्ला के इस बयान से यह संदेश मिलता है कि राजनीतिक आलोचना और प्रशंसा दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हो सकते हैं, और नेताओं को समय-समय पर ईमानदारी के साथ अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है, चाहे वह उनके पारंपरिक विचारों से मेल खाता हो या नहीं।