‘नवरात्र में गोमूत्र पिलाकर दी जाए गरबा पंडाल में एंट्री’, बीजेपी जिलाध्यक्ष का बयान
नवरात्रि के दौरान गरबा पंडालों में गोमूत्र पिलाकर प्रवेश देने के बयान को लेकर एक बीजेपी जिलाध्यक्ष के बयान ने काफी विवाद खड़ा कर दिया है। यह बयान एक सार्वजनिक कार्यक्रम में दिया गया, जिसमें उन्होंने कहा कि नवरात्रि के पवित्र त्योहार के दौरान गरबा पंडालों में शुद्धता और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए लोगों को गोमूत्र पिलाया जाए, जिससे वे पवित्र होकर पंडाल में प्रवेश कर सकें।
बीजेपी जिलाध्यक्ष ने अपने बयान में यह तर्क दिया कि गोमूत्र को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है, और इसका सेवन करने से व्यक्ति का शुद्धिकरण होता है। उनका कहना था कि नवरात्रि के गरबा पंडालों में केवल उन्हीं लोगों को प्रवेश मिलना चाहिए, जिन्होंने गोमूत्र पिया हो, ताकि पंडाल की पवित्रता बनी रहे और कोई अशुद्ध व्यक्ति वहां प्रवेश न कर सके।
जिलाध्यक्ष के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं। कई लोगों ने इसे धार्मिक मान्यताओं का मजाक उड़ाने और जनता को गलत संदेश देने वाला बताया। सोशल मीडिया पर इस बयान की निंदा हो रही है और कई लोग इसे अतिरेकी और अनुचित मान रहे हैं।
विपक्षी दलों ने भी इस बयान की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि यह धार्मिक मान्यताओं के नाम पर राजनीति करने का प्रयास है और इससे समाज में गलत संदेश जा रहा है। विपक्षी नेताओं ने मांग की है कि बीजेपी इस तरह के बयानों से खुद को अलग करे और जिलाध्यक्ष के खिलाफ कार्रवाई करे।
बीजेपी ने फिलहाल इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पार्टी के भीतर भी इस बयान को लेकर असहजता देखी जा रही है। कुछ बीजेपी नेताओं का मानना है कि ऐसे बयान पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं और जनता में गलत संदेश जा सकता है।
गोमूत्र को हिंदू धर्म में पवित्र और औषधीय गुणों वाला माना जाता है, लेकिन इसे इस प्रकार सार्वजनिक रूप से पिलाने का विचार और इसे शुद्धिकरण के तौर पर लागू करना विवाद का विषय बन गया है। धार्मिक विशेषज्ञों का कहना है कि धार्मिक आस्थाओं का सम्मान होना चाहिए, लेकिन उन्हें किसी पर थोपा नहीं जाना चाहिए।
बीजेपी जिलाध्यक्ष के इस बयान ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में काफी विवाद खड़ा कर दिया है। जहां कुछ लोग इसे धार्मिक मान्यता का पालन करने का सुझाव मान रहे हैं, वहीं कई इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक आस्थाओं के गलत उपयोग के रूप में देख रहे हैं।