नई दिल्ली, 3 अगस्त 2024 – पिछले साल, यानी 2023 में, 2,16,219 भारतीयों ने अपनी नागरिकता त्यागकर दूसरे देशों की नागरिकता को स्वीकार किया। हालांकि, 2022 की तुलना में इस संख्या में थोड़ी कमी आई है। 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी थी। केंद्र सरकार ने राज्यसभा में यह जानकारी दी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पिछले एक दशक में भारतीय नागरिकता छोड़ने की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी देखी गई है।
नागरिकता छोड़ने के आंकड़े (2014-2023):
– 2023: 2,16,219
– 2022: 2,25,620
– 2021: 1,63,370
– 2020: 85,256
– 2019: 1,44,017
– 2018: 1,34,561
– 2017: 1,33,049
– 2016: 1,41,603
– 2015: 1,31,489
– 2014: 1,29,328
पिछले दस वर्षों में, 2020 को छोड़कर, भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या में सामान्यतः वृद्धि देखी गई है। हालांकि 2020 में महामारी के कारण यात्रा और आव्रजन में गिरावट आई थी, लेकिन इसके बाद के वर्षों में यह संख्या फिर से बढ़ गई।
व्यक्तिगत निर्णय और ‘सॉफ्ट पावर’ का उपयोग:**केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि नागरिकता छोड़ने का निर्णय पूरी तरह से व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है। हालांकि, सरकार का यह भी मानना है कि ज्ञान के इस युग में, समृद्ध, सफल और प्रभावशाली प्रवासी भारतीय देश के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति हैं। ये प्रवासी भारतीय सॉफ्ट पावर के रूप में विशेष महत्व रखते हैं, और सरकार उनसे जुड़कर इस शक्ति का लाभ उठाने के लिए निरंतर प्रयासरत है।
संपन्न प्रवासी भारतीय समुदाय का देश की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में, सरकार का ध्यान इस बात पर है कि चाहे भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या में वृद्धि हो, फिर भी वे भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाए रखें और भारत की सॉफ्ट पावर को वैश्विक स्तर पर और प्रभावशाली बनाएं।
भारतीय नागरिकता छोड़ने का निर्णय भले ही व्यक्तिगत हो, लेकिन यह एक व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जिसे सरकार गहराई से समझने और इसके अनुसार अपनी नीतियों को आकार देने का प्रयास कर रही है।