इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश), 05 दिसंबर 2025
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए मस्जिद द्वारा दायर की गई लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने की याचिका को खारिज कर दिया। मस्जिद प्रशासन ने अदालत से अनुमति मांगी थी कि उन्हें नमाज़ और अज़ान के लिए लाउडस्पीकर उपयोग करने की इजाजत दी जाए, लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि लाउडस्पीकर किसी भी धर्म का मूल अधिकार नहीं है, बल्कि एक तकनीकी साधन है।
अदालत का तर्क: शांति-सुरक्षा सर्वोपरि
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संविधान सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता देता है, लेकिन उसका उपयोग सार्वजनिक शांति, स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था को प्रभावित करने की कीमत पर नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा:
“किसी भी धर्म में यह अनिवार्य नहीं है कि प्रार्थना या धार्मिक कर्मकांड लाउडस्पीकर या एम्प्लीफायर से ही किए जाएं। बिना ध्वनि विस्तारक उपकरण के भी श्रद्धा, भक्ति और पूजा पूरी तरह संभव है।”
न्यायपीठ ने यह भी कहा कि ध्वनि प्रदूषण के नियम सभी धर्मों और समुदायों पर समान रूप से लागू होते हैं।
मस्जिद कमेटी का पक्ष
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि अज़ान इस्लाम में महत्वपूर्ण धार्मिक घोषणा है और वर्षों से लाउडस्पीकर का उपयोग इसकी परंपरा का हिस्सा बन चुका है। उनका कहना था कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल धार्मिक स्वतंत्रता और अभ्यास के अधिकार के अंतर्गत आता है।
लेकिन अदालत ने कहा कि परंपरा और सुविधा कानूनी अधिकार का आधार नहीं बन सकती।
सरकार और प्रशासन की रिपोर्ट
राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि क्षेत्र में पहले भी कई शिकायतें दर्ज हुई थीं जिनमें छात्रों, बुजुर्गों, बीमार लोगों, नवजातों के परिजनों और पर्यावरण विभाग ने ध्वनि स्तर को लेकर गंभीर आपत्ति जताई थी।
सरकार ने तर्क दिया कि धार्मिक स्थलों के लिए ध्वनि सीमा तय है और अनुमति तभी दी जा सकती है जब शोर स्तर निर्धारित मानकों के भीतर रहे।
अदालत का स्पष्ट संदेश
हाईकोर्ट ने धर्म और सार्वजनिक अधिकारों के संतुलन पर टिप्पणी करते हुए कहा:
“ध्वनि प्रदूषण रोकना केवल कानूनी दायित्व नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी है। धार्मिक स्वतंत्रता दूसरों की शांति भंग करने का अधिकार नहीं देती।”
अब आगे क्या?
फैसले के बाद मस्जिद कमेटी के पास विकल्प है कि वह:
- हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करे
- या मामला सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे
- फिलहाल अदालत के आदेश के बाद संबंधित मस्जिद में लाउडस्पीकर का उपयोग प्रतिबंधित रहेगा।
यह फैसला धार्मिक स्वतंत्रता, नागरिक अधिकारों और ध्वनि प्रदूषण के मुद्दों पर एक बड़ा उदाहरण बन सकता है, और संभव है कि इससे भविष्य में इसी तरह के मामलों में दिशा तय होगी।
