- इज ऑफ डूइंग बिजनिस को सार्थक कराने की पहल
गुरुग्राम: उत्तर प्रदेश में उद्यमियों और व्यापारियों के हित में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक द्वारा एक निर्देश जारी किया गया है कि उद्यमियों और व्यापारियों पर अनावश्यक आपराधिक कानूनी कार्रवाई अब नहीं की जाएगी। इस आदेश में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिट याचिका क्रिमिनल संख्या 68/2008 तनिवा कुमारी बनाम उ0प्र0 राज्य में पारित निर्णय का हवाला दिया गया है। पुलिस महानिदेशक के आदेश में कहा गया है कि सिविल प्रकृति के विवादों पर एफआईआर दर्ज करना उचित नहीं है। इन विवादों का निराकरण सिविल न्यायालय के माध्यम से हो सकता है। अक्सर देखा जाता है कि व्यवसायिक स्पर्धा तथा व्यापारिक लेनदेन के कारण उत्पन्न विवाद जिसमें स्वार्थवश प्रकरण के तथ्यों को तोड़मरोड़ कर उसे आपराधिक रंग देते हुए एपफआईआर पंजीकृत करा दिया जाता है। औद्योगिक और व्यापारिक प्रतिष्ठान संस्थानों आदि में कोई आकस्मिक घटना होने पर इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार नहीं होने वाले मालिक और प्रबंधन स्तर के लोगों पर भी मामले दर्ज किए जाते हैं। इस प्रकार से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर निर्दोष व्यक्तियों विशेष रूप से उद्यमियों और व्यापारियों पर निराधार एफआईआर पंजीकृत किए जाने से प्रदेश में सरकार के ईज ऑफ डूईंग बिजनेस अभियान को झटका लगता है। उत्तर प्रदेश की तर्ज पर हरियाणा में भी इस प्रकार का कदम सरकार उठाए इसके लिए व्यापार और उद्योग जगत के हित में राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही प्रोग्रेसिव फेडरेशन ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (पीएफटीआई) द्वारा इस विषय पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल को पत्र लिखा गया है।
पीएफटीआई के चेयरमैन दीपक मैनी का कहना है कि प्रदेश में ईज ऑफ डूईंग बिजनेस के प्रोत्साहन के लिए व्यापारियों और उद्यमियों को अनावश्यक कानूनी कार्रवाई से निजात दिलाना बहुत जरूरी है। इनका कहना है कि उत्तर प्रदेश की तरह से ही हरियाणा में भी इस प्रकार का प्रभावी कदम तत्काल प्रभाव से उठाने की जरूरत है। दीपक मैनी का यह भी कहना है कि जहां एक ओर जब किसी औद्योगिक संस्थान में कोई हादसा होता है तो मालिक और प्रबंधन के खिलाफ कारखाना अधिनियम में संबंधित विभाग द्वारा लाखों रुपये के चालान की कार्रवाई की जाती है। जो एक तरह से विभाग द्वारा आपराधिक कार्रवाई होती है। वही दूसरी ओर हादसे से पीड़ित व्यक्ति मुआवजे के लालच में पुलिस को शिकायत देकर एफआईआर दर्ज करवा देते हैं, जबकि पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा और पेंशन मिले उसको ईएसआई में बीमित भी करवाते हैं। इसके बावजूद संस्थान मालिक और प्रबंधन को लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इस तरह से एक हादसा होने पर प्रबंधन के खिलाफ दो कानूनी कार्रवाई की जाती हैए जिसमे आर्थिक दंड के रूप में प्रबंधन से अदालत की मार्फ़त लाखों रुपये वसूले जाते है। वही पुलिस द्वारा प्रबंधन पर हादसे के लिए आपराधिक मुकदमा किया जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए पीएफटीआई की ओर से मुख्यमंत्री मनोहर लाल से निवेदन किया गया है कि किसी भी हादसे के लिए प्रबंधन पर आपराधिक कार्रवाई पुलिस ना करे ऐसा प्रावधान किया जाए। मैनी ने कहा कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रदेश में ईज ऑफ डूईंग बिजनेस को प्रभावी तरीके से जमीनी स्तर पर लागू करने को लेकर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में उनसे पत्र के माध्यम से निवेदन किया गया है कि हरियाणा में भी व्यापार.उद्योग को और प्रोत्साहित करने को लेकर उत्तर प्रदेश की तरह से व्यापार और उद्योग को अनावश्यक कानूनी कार्रवाई बचाने के ठोस उपाय किए जाएं। पत्र में मुख्यमंत्री से यह भी मांग की गई है कि उद्योगों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में सीधे पुलिस का हस्तक्षेप न हो। उद्योगों से संबंधित विभागों को ही मामले की जांच अपने स्तर पर करनी चाहिए। यदि संबंधित विभाग को ऐसा लगता है कि कोई मामला पुलिस के पास जाना चाहिए तो वह इसकी पहल कर सकता है। हर मामले में पुलिस के हस्तक्षेप से औद्योगिक और व्यापारिक वातावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।