हरियाणा चुनाव: सत्ता पाने के लिए BJP-कांग्रेस की क्या है बड़ी ताकत?
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 की तैयारी जोरों पर है, और सत्ता पर कब्जा जमाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस दोनों पार्टियां पूरी ताकत से मैदान में उतर रही हैं। बीजेपी जहां तीसरी बार लगातार राज्य में सरकार बनाने की उम्मीद कर रही है, वहीं कांग्रेस को 10 साल बाद सत्ता में वापसी का भरोसा है। दोनों ही पार्टियों के सामने हालांकि बागियों और आंतरिक कलह की चुनौती भी खड़ी है, जो उनके चुनावी समीकरणों को बिगाड़ सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की प्रशासनिक छवि के बूते बीजेपी तीसरी बार सत्ता में लौटने का दावा कर रही है। मोदी की रैलियों ने राज्य में पार्टी के पक्ष में माहौल को गर्म किया है, खासकर किसान और शहरी मतदाताओं के बीच। बीजेपी के पास संगठन का मजबूत ढांचा, केंद्रीय योजनाओं का समर्थन, और खट्टर सरकार की कई उपलब्धियां हैं, जिनका वह चुनाव में लाभ उठा सकती है।
हालांकि, पार्टी के सामने सबसे बड़ा खतरा बागियों से है। हरियाणा में कई बीजेपी नेता टिकट बंटवारे से असंतुष्ट हैं, और संभावित रूप से ये बागी नेता चुनावी समीकरण को बिगाड़ सकते हैं। साथ ही, राज्य में जाट और गैर-जाट समुदाय के बीच संतुलन बनाए रखना भी बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
दूसरी ओर, कांग्रेस भी राज्य में अपने पुराने वोटबैंक को फिर से संगठित करने की कोशिश में है। राहुल गांधी की रैलियों और ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह है, और वे इस चुनाव को सत्ता में वापसी का सुनहरा मौका मान रहे हैं। कांग्रेस को उम्मीद है कि उसके पारंपरिक वोटबैंक, खासकर ग्रामीण इलाकों में, उसकी सत्ता वापसी की राह आसान करेंगे।
लेकिन कांग्रेस को आंतरिक कलह और गुटबाजी से बड़ा खतरा है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पार्टी की अन्य वरिष्ठ नेताओं के बीच खींचतान पार्टी की चुनावी तैयारियों को कमजोर कर सकती है। इसके अलावा, पार्टी के कई नेता टिकट बंटवारे और नेतृत्व के फैसलों से नाराज़ हैं, जो चुनाव के दौरान पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
दोनों पार्टियों के लिए बागियों का खतरा वास्तविक है। बीजेपी के बागी नेताओं की नाराजगी और कांग्रेस के गुटीय झगड़े दोनों पार्टियों के वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकते हैं। चुनाव में इन बागियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है, और ये उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़कर या अन्य पार्टियों के टिकट पर मुकाबले को त्रिकोणीय बना सकते हैं।
हरियाणा में जातिगत समीकरण, आंतरिक कलह और बागियों की चुनौती के बीच दोनों पार्टियां सत्ता के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं। चुनावी नतीजे इस बात पर निर्भर करेंगे कि कौन इन चुनौतियों से पार पाकर जनता का भरोसा जीत पाता है।