गुरुग्राम 9 अक्टूबर । यहां के राजीव नगर स्थित अखंड परमधाम गुफा वाला शिव मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण के तीसरे दिन व्यास पीठ पर विराजित श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर साध्वी आत्म चेतना ने कहा कि यदि हम आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना चाहते हैं तो हमें विधि विधानों का पालन करना चाहिए और अपने विगत जीवन तथा इस वर्तमान जीवन की त्रुटियों को सुधारना चाहिए।
महामंडलेश्वर ने कहा कि जो लोग सभी प्रकार के पाप कर्मों से मुक्त हो चुके हैं और अब पुण्य कर्मों में लगे हुए हैं वे ही ईश्वर को पूरी तरह से समझ सकते हैं ।जो पाप कर्म करते हैं और शारीरिक सुविधाओं एवं लौकिक मैत्री, समाज तथा पारिवारिक स्नेह के प्रति अत्यधिक अनुरक्त रहते हैं उन्हें आध्यात्मिक अनुभूति नहीं हो पाती। अतः हमें अपने आगामी जीवन को सुधारने के लिए प्रभु में आसक्ति बनानी चाहिए। हमें चिंतन द्वारा अपनी व्याख्या नहीं करनी चाहिए ।हमें महान आचार्य द्वारा दिए गए आदेशों को स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि यही वैदिक प्रणाली की प्रक्रिया है ।
महामंडलेश्वर बताया कि भगवान की सेवा के छह अंग हैं -नमस्कार ,स्तुति, समस्त कर्मों का समर्पण, सेवा पूजा, चरण कमलों का चिंतन और लीला कथा का श्रवण। इनके सेवन से भगवान की प्राप्ति सुलभ हो जाती है , और श्रीमद्भागवत पुराण में इन समस्त अंगों का वर्णन किया गया है। जैसे अग्नि में सोना तपने कंचन बन जाता है। उसके सारे दोष दूर हो जाते हैं और उसका स्वरूप निखर जाता है। वैसे ही भगवान की सेवा से जीव अपने अंतः करण का अज्ञान रूपी मल त्याग देता है और अपने असली स्वरूप में स्थित हो जाता है
इस अवसर पर महामंडलेश्वर श्री श्री1008 स्वामी सत्यानंद गिरि जी महाराज ने भी भक्तों को आशीर्वचन प्रदान किया। उन्होंने कहा की श्रीमद्भागवत पुराण एक कल्पवृक्ष के समान है। इसके सुनने मात्र से ही मनुष्य तमाम भव बंधनों से मुक्त हो जाता है। जब राजा परीक्षित को अपनी मृत्यु का पता लग गया कि 7 दिन पश्चात उनकी तक्षक नाग के काटने से मृत्यु हो जाएगी तो तो उन्होंने इसी श्रीमद् भागवत महापुराण का श्रवण किया और उनकी सभी शंकाओं का समाधान हो गया । उन्होंने कहा कि कलयुग में भगवान नाम का संकीर्तन से ही मुक्ति मिल जाती है उन्होंने कहा कि हमें प्रतिदिन कम से कम एक माला ओम नमो भगवते वासुदेवाय की आवश्यक करनी चाहिए। इस अवसर पर उन्होंने चार श्लोकी है श्रीमद् भागवत पुराण का विस्तार वर्णन भी किया ।कथा के अंत में श्रीमद्भागवत पुराण की संगीत में आरती की गई इसमें अनेक श्रद्धालुओं ने भाग लिया