- दोनों युवा हैं सरकारी सेवा में अधिकारियों के बेटे
- अभिनव है दिल्ली में एसडीएम, प्रांशु रेलवे में अहमदाबाद में करते हैं नौकरी
गुरुग्राम:गुरुग्राम 23 मई को संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से जारी किए गए परीक्षा परिणाम में गुरुग्राम में रहने वाले दो युवाओं ने सफलता हासिल कर नाम रोशन किया है। यहां के अभिनव सिवाच ने 12वां रैंक हासिल किया, वहीं प्रांशु शर्मा को 65वां रैंक मिला है। उनकी सफलता पर परिवारों में खुशी का माहौल है.
इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक, एमबीए पास अभिनव सिवाच पहले तो मुंबई में एक कंपनी में 35 लाख रुपये के सालाना पैकेज पर नौकरी करते थे। उस नौकरी से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें पैसा कमाने से ज्यादा सिविल सेवा में आकर देश, समाज की सेवा करनी थी। इसलिए इतने बड़े पैकेज के बाद भी उन्होंने कंपनी की नौकरी को छोड़ा और सिविल सर्विस की तैयारी में जुट गए। उन्हें दिल्ली में सरकारी नौकरी भी मिल गई। मूलरूप से फतेहाबाद जिला के गांव गोरखपुर के रहने वाले अभिनव सिवाच फिलहाल दिल्ली में एसडीएम के पद पर कार्यरत हैं। अभिनव ने दूसरी बार में ही यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। अभिनव का कहना है कि आईएएस के रूप में उनका प्राथमिकता हरियाणा कैडर है। उनके पिता सतबीर सिवाच गुरुग्राम में आबकारी एवं कराधान विभाग में उपायुक्त के पद पर कार्यरत हैं. मां सुमन सिवाच गृहिणी हैं। छोटा भाई स्नातक की पढ़ाई कर रहा है.
प्रांशु को पांच बार मिली असफलता के बाद छठी बार में हुए पार
गुरुग्राम के प्रांशु शर्मा को 65वां रैंक हासिल हुआ। प्रियांशु शर्मा वर्ष 2018 से रेलवे में अहमदाबाद में नौकरी कर रहे हैं। उनके पिता गुरुग्राम में चीफ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत हैं। प्रांशु के मुताबिक यूपीएससी की परीक्षा में च्वाइस का ऑप्शन भी होता है, जिसमें उन्होंने विदेश सेवा (फॉरेन सर्विस) भरा था। अगर उसे यह सेवा मिली तो सही, नहीं तो कोई अन्य सेवा भी मिलती है तो सर्वश्रेष्ठ काम वे करेंगे.
प्रांशु का कहना है कि पढ़ाई को लेकर उसने घंटे तो तय नहीं किए थे, लेकिन पढ़ाई वह लगातार करता रहा। उसे पढऩे के बाद उसे दोहराना अच्छा लगता है और यही आदत उसे सफलता तक लेकर आई है। उनकी छोटीे बहन मायरा जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रही है। रिटायर चीफ इंजीनियर पिता विजय कुमार शर्मा व गृहिणी मां रुचि शर्मा ने अपने बेटे की इस सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि प्रांशु को एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। रेलवे में नौकरी करते हुए भी वह अपनी तैयारियों में जुटा रहता.