Sunday, May 19, 2024

IPC में मौत की सजा बरकरार रखेगी सरकार:देशद्रोह, आतंकवाद और जघन्य अपराध रेयरेस्ट कैटेगरी में; नए कानूनों में पहली बार टेररिज्म की परिभाषा बनी

IPC में मौत की सजा बरकरार रखेगी सरकार:देशद्रोह, आतंकवाद और जघन्य अपराध रेयरेस्ट कैटेगरी में; नए कानूनों में पहली बार टेररिज्म की परिभाषा बनी

केंद्र सरकार भारतीय न्याय संहिता में मृत्युदंड के प्रावधान को बरकरार रखेगी। इसे हटाने की मांग के बीच संसदीय समिति ने यह सिफारिश की थी कि मृत्युदंड के प्रावधान पर सरकार फैसला करे। संसद के शीतकालीन सत्र में तीनों कानून- भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता और साक्ष्य अधिनियम पास होने की उम्मीद है।

मानसून सत्र में पेश इन कानूनों पर गृह मंत्रालय की स्थायी समिति ने समीक्षा के बाद मृत्युदंड की सजा के प्रावधान को हटाने के मुद्दे पर विचार किया। इसमें तर्क यह आया कि दोषपूर्ण न्यायिक प्रणाली से किसी निर्दोष को मृत्युदंड मिल सकता है। कई देशों में मृत्युदंड की सजा खत्म करने के उदाहरण भी दिए गए।

मृत्युदंड हटा तो नतीजे गंभीर होंगे, इसलिए इसे रखना जरूरी
सूत्रों का कहना है कि, समिति की सिफारिश के बाद सरकार मृत्युदंड के प्रावधान को रखने के पक्ष में है। देशद्रोह, आतंकवाद और जघन्य अपराध जैसे मामलों में मृत्युदंड के प्रावधान को बरकरार रखने की जरूरत है। यदि इसे हटा लिया गया तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

जानिए तीनों कानूनों में क्या-क्या रखा गया है…

1. भारतीय न्याय संहिता (IPC): राजद्रोह को खत्म किया गया है। लेकिन राष्ट्र के खिलाफ कोई भी गतिविधि दंडनीय होगी। पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया है और इसे दंडनीय अपराध बनाया गया है। संगठित अपराध के लिए नई धारा जोड़ी गई है। सामूहिक दुष्कर्म के लिए 20 साल की कैद या ताउम्र जेल की सजा होगी।

2. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट): दस्तावेज के तहत इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर फाइलें, स्मार्टफोन/लैपटॉप संदेश, मेल संदेश शामिल हैं। एफआईआर, केस डायरी, चार्जशीट और फैसले का डिजिटलीकरण जरूरी। साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, मुकदमेबाजी और अपीलीय कार्यवाही का डिजिटलीकरण।

3. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (CrPC): जीरो एफआईआर पुलिस स्टेशन की सीमा के बाहर दर्ज हो सकती है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी केस दर्ज। आरोप पत्र दाखिल करने के बाद आगे की जांच के लिए 90 दिन का समय। विस्तार कोर्ट की मंजूरी से ही मिलेगा। बहस पूरी होने के 30 दिन में फैसला, विशेष कारणों में अवधि बढ़ सकेगी।

इन बदलावों की भी संभावना

IPC में 511 धाराएं हैं, 356 बचेंगी। 175 धाराएं बदलेंगी, 8 नई जोड़ी जाएंगी, 22 धाराएं खत्म होंगी। इसी तरह CrPC में 533 धाराएं बचेंगी। 160 धाराएं बदलेंगी, 9 नई जुड़ेंगी, 9 खत्म होंगी। पूछताछ से ट्रायल तक वीडियो कॉन्फ्रेंस से करने का प्रावधान होगा, जो पहले नहीं था।

सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा। देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं। इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं।

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