Sunday, May 19, 2024

वेस्ट यूपी में तय हुआ हवा का रुख, अजित सिंह की गैरमौजूदगी में जयंत की परीक्षा

वेस्ट यूपी में तय हुआ हवा का रुख, अजित सिंह की गैरमौजूदगी में जयंत की परीक्षा

पश्चिमी यूपी  मार्च 17 2024| बीजेपी, कांग्रेस, एसपी और बीएसपी ने पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है, लेकिन सबकी नजर पश्चिमी यूपी की इन सीटों पर है. इस बार का चुनाव दिलचस्प होगा| सपा और कांग्रेस का गठबंधन है तो रालोद अब एनडीए का हिस्सा है। वहीं बसपा अकेले चुनावी रण में उतरेगी।

2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद साल 2014 के लोकसभा चुनाव को भाजपा ने ध्रुवीकरण के हथियार से चुनावी धार दी थी। यहां से निकली भगवा लहर का असर पूरे देश में महसूस किया गया था। इसका यह असर हुआ था कि उत्तर प्रदेश से एक भी मुस्लिम लोकसभा नहीं पहुंचा था। हालांकि 2019 में पश्चिम में भगवा लहर की गति मंद हुई थी।
भाजपा इस बार भी ध्रुवीकरण की पगडंडी पर चलती दिखाई दे रही है। धारा 370, राम मंदिर और सीएए उसके हथियार हैं। इससे इतर 2019 के चुनाव में सपा, बसपा और रालोद का गठबंधन था। कांग्रेस का किसी से मेल नहीं था। भाजपा पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ गठबंधन के साथियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। इस बार सपा और कांग्रेस का गठबंधन है तो रालोद अब एनडीए का हिस्सा है। बसपा अकेले चुनावी रण में है।

सपा-कांग्रेस मुस्लिम वोटरों के साथ जातीय समीकरण पर भरोसा कर रही हैं। भाजपा ने रालोद से दोस्ती कर सारे कील-कांटे दुरुस्त करने की पूरी कोशिश की है। कई बड़े चेहरे इस बार मैदान में नजर नहीं आएंगे। चौधरी चरण सिंह की विरासत संभालने वाले चौधरी अजित सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं। अजित सिंह की विरासत अब उनके बेटे जयंत चौधरी संभाल रहे हैं।

अजित सिंह 2019 के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के साथ मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़े थे और मामूली अंतर से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। गाजियाबाद के मौजूदा सांसद जनरल वीके सिंह और मेरठ के तीन बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल के टिकट को भी लेकर फिलवक्त अटकलें हैं। वहीं बागपत सीट रालोद के खाते में जाने से मौजूदा सांसद सत्यपाल सिंह चुनाव से बाहर हो गए हैं। रालोद ने यहां से डॉ. राजकुमार सांगवान को अपना प्रत्याशी बनाया है। मेरठ से याकूब कुरैशी चुनाव लड़ेंगे इसकी संभावना बहुत कम है। पिछली बार वह सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी थे और बसपा के टिकट पर मैदान में थे।

अजित सिंह की गैर मौजूदगी में जयंत की होगी परीक्षा

हाल के लोकसभा चुनावों में चौधरी अजित सिंह के बिना यह पहला लोकसभा चुनाव होगा। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में अजित सिंह की पार्टी आरएलडी हाशिए पर थी। 2020 में अजित सिंह के निधन के बाद पहला चुनाव 2022 का विधानसभा चुनाव हुआ,जिसमें रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने सपा के साथ गठबंधन किया और पश्चिमी यूपी में 9 सीटें जीतने में सफल रहे|

मुजफ्फरनगर दंगे के बाद यह पहला चुनाव था जिसमें भाजपा को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। पश्चिम में रालोद को संजीवनी मिली तो भाजपा की चिंता बढ़ना स्वाभाविक था। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयंत चौधरी का दिल जीत लिया। कुछ दिन पहले तक रालोद इंडिया गठबंधन का हिस्सा था और सपा के साथ उसकी सीट शेयरिंग भी हो चुकी थी। सपा ने रालोद को 7 सीटें दी थीं, लेकिन जयंत ने इंडिया गठबंधन छोड़ एनडीए गठबंधन के साथ जाना बेहतर समझा।

एसपी-बीएसपी गठबंधन ने पश्चिम की सात सीटों पर कब्जा किया था

2019 के चुनाव में सपा और बसपा ने पश्चिमी यूपी की सात सीटों पर कब्जा किया था। इसमें सपा ने रामपुर, मुरादाबाद, संभल सीट जीती थी जबकि बसपा ने सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा सीट पर फतह हासिल की थी।

2014 के चुनाव में यह सभी सीटें मोदी लहर में भाजपा के खाते में गई थीं। इस बार सपा-बसपा का गठबंधन नहीं हैं तो भाजपा इसका लाभ लेने की पूरी कोशिश करेगी और दोबारा इन सीटों पर अपना कब्ज़ा जमाना चाहेगी। 2014 के चुनाव में यह सभी सीटें भाजपा के खाते में गई थीं।

इन सीटों पर कम मार्जिन से हुआ हार जीत का फैसला

2019 के चुनाव में मेरठ और मुजफ्फरनगर ऐसी सीट थी जहां फैसला कम वोटों के अंतर से हुआ था। मुजफ्फरनगर में भाजपा के संजीव बालियान ने रालोद के अजित सिंह को 6526 वोटों से हराया था। वहीं मेरठ सीट को भाजपा ने बसपा के याकूब कुरैशी से 4707 वोटों के अंतर से जीती थी। भाजपा की कोशिश इस चुनाव में इन सीटों पर जीत के अंतर को बढ़ाने की होगी वहीं सपा-कांग्रेस इस सीट को अपनी झोली में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगी।

कैराना की जनता हर बार अपना सांसद बदल देती है

एक सीट कैराना की भी है जिसे विपक्षी गठबंधन अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश करेगा। क्योंकि कैराना का मिजाज कुछ ऐसा है कि वह हर नया सांसद चुनता है। 2009 में बसपा से तबस्सुम हसन सांसद बनी थीं।

2014 में भाजपा ने यह सीट जीत ली और हुकुम सिंह सांसद बने। हुकुम सिंह का 2018 में निधन हो गया तो यहां उपचुनाव हुआ। उप चुनाव में रालोद के टिकट पर तबस्सुम हसन चुनाव जीत गईं। 2019 का चुनाव हुआ तो भाजपा ने बाजी मार ली और प्रदीप चौधरी सांसद बने। भाजपा ने इस बार फिर से प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है। वहीं सपा ने तबस्सुम हसन की बेटी इकरा हसन को उम्मीदवार बनाया है।

सपा और कांग्रेस का गठबंधन है

पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है, जो अब कभी भी हो सकती है। रालोद ने अपने खाते की दोनों सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं, जबकि भाजपा ने मेरठ, सहारनपुर और गाजियाबाद जैसी सीटों पर प्रत्याशियों के चयन को लेकर माथापच्ची कर रही है। कांग्रेस ने अभी तक यूपी में अपने प्रत्याशियों का एलान नहीं किया है। माना जा रहा है कि सहारनपुर से इमरान मसूद कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे। वहीं बसपा ने सहारनपुर से माजिद को अपना प्रत्याशी बनाया है।

एआईएमआईएम भी अपनी छाप छोड़ने की जुगत में

इस बार चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी छाप छोड़ने की जुगत में है। मेरठ मेयर चुनाव में मिले वोटों के बदौलत पार्टी के हौसले काफी बुलंद हैं। इस चुनाव में एआईएमआईएम दूसरे नंबर पर थी, जबकि सपा तीसरे और बसपा चौथे नंबर पर थी। इसके अलावा 6 पार्षद इस चुनाव में एआईएमआईएम के जीते थे। पार्टी के इस प्रदर्शन ने सपा और बसपा दोनों की चिंताएं बढ़ा दी थीं। ऐसे में एआईएमआईएम को हल्के में लेने की भूल सपा-कांग्रेस या बसपा बिल्कुल नहीं करेगी।

Latest Videos

आपकी राय

क्या आप ट्विटर ब्लू टिक के लिए हर महीने 900 रुपये देने को तैयार हैं?

View Results

Loading ... Loading ...
Latest news
Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

You cannot copy content of this page